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यदि गरीब के झोपवे में जलाया
और शीतलता को ग्रहण करे, मावा
और सेना से प्रेरणा और
इसि-भासियाई गुजराती भाषान्तर :
અમિ, સૂર્ય, ચન્દ્ર, સાગર અને સરિતા, ઈન્દ્રધ્વજ સેના અને નવા મેનું ચિન્તન કરવું જોઈએ.
साधक चिन्तन के क्षणों में संसार की प्रमुख वस्तुओं के स्वरूप को अपने सामने रखे तो उसको प्रेरणा मिलती रहेगी। अग्नि तेजस्वी है, तेज और प्रकाश उसका गुण और धर्म है। रसको राज-महलों में जलाया जाय तब भी प्रकाश देगी और यदि गरीब के झोंपड़े में जलाया जाय तब भी प्रकाश ही देगी। साधक को चाहिए कि वह प्रकाशत्व और तेजस्विता अभि से 'प्रहण करे, सूर्य और चन्द्र से प्रशः तेजस्विता और शीतलता को ग्रहण करे, माथ ही कर्तव्य में नियमितता का पाठ सीखे। सागर और सरिता से गंभीरता और जीवन का कण कण लुटा देने का स्वभाव प्रहण करे। इन्द्रध्वज और सेना से प्रेरणा और . पुरुषार्थ पाये और नए मेघ से क्षणिक आभा और परहित में संपत्ति व्यय करने की प्रेरणा पाये। यदि साधक के पास खुली दृष्टी है और उसका मस्तिष्क चिन्तनशील है तो दुनिया का हर एक पदार्थ उसे कर्तव्य की प्रेरणा दे जाएगा।
टीका:-पक्षिमित्यादि सबो मेघमित्र चिन्तयेदकाण्डागमनगमनशीलम् । टीकाकार का कथन है कि साधक बडिमादि सभी को सम मेष की भांति समझे । क्यों कि ये सब अकारण ही माने और जाने वाले है।
जोधणं रूवसंपत्ति, सोभाग्मं धणसंपदं ।
जीवितं वा वि जीचाणं, जलघुग्घुयसंमिमं ॥६॥ अर्थ:-यौवन, रूप सौन्दर्य, सौभाग्य, धन, संपति और प्राणियों का जीवन जल बुद्धद के सदृश है। गुजराती भाषान्तर:
ચૌવન, રૂપનું દર્ય, સૌભાગ્ય, ધન, સંપત્તિ અને જીવોની જીંદગી પાણીના પરપોટા જેવી છે.
यौवन और सौन्दर्य, सौभाग्य और सम्पत्ति मानव मन में छपे हए अहंकार के बीज है । यह दर्प का सर्व मानव मन को डसता भी है। किन्तु रूप का अहंकार क्यों ।। जरा रूप और यौवन सब को एक ही सांस में समेट ले जाएगी। जीवन पानी का बुलबुला है, फिर इतमा अहकार क्यों है।
विकसता मुना-ने को फूल, उदय होता छिपने को चन्द । शून्य होने को भरसे मेघ, दीप जलता होने को मन्द । यहां किसका स्थिर यौवम, अरे ! अस्थिर छोटे जीवन । -महादेवी वर्मा । देविदा समाहिड्डीया, दाणविंदा य विस्सुता ।
परिंदा जे य विता, संखयं षिषसा गता ॥७॥ अर्थ:-दिव्य महदि से युक्त-देवेन्द्र, प्रख्यात दानवेन्द्र और महान् बलशाली नरेन्द्र एक दिन विवश होकर समाप्त हो गए। गुजराती भाषान्तर:
સ્વર્ગીય વૈભવથી (કાશક્તિને) યુક્ત દેવેન્દ્રો, પ્રખ્યાત દાનવેન્દ્રો અને મહાન બળી નરેન્દ્રો એક દિવસ વિવશ થઈ લુપ્ત થઈ ગયા.
देवेन्द्र, दानवेन्द्र और एक मानवेन्द सत्ता और शक्ति के प्रतीक है, एक दिन जो सिंहासन पर बैठकर सिंह की भांति गर्जते थे, सम्पत्ति और वैभव जिनके आंगन में नाचा करते थे उन देवेन्द्रों को भी अपना सिंहासन त्याग कर एक दिन बल देना पड़ा। काल की कराल शक्ति ने शस्त्रों की छाया में बसने वाले सम्राटों को भी चल पाने के लिए विवश कर दिया। कौन अमर बन कर आया है और किसका यौवन अनन्त काल तक स्थिर रहा है।
सम्वत्थ गिरणुकोसा, णिब्धिसेसप्पहारिणो।
सुत्त-मत्त-पमसाणं, एका जगति ऽणिश्चता ॥८॥ अर्थ:-अनित्यता जगत् में सर्वत्र निरुत्कृष्ठ और निर्विशेष रूप से सुप्रमत्त सुप्त मत्त-और प्रमत्तों पर प्रहार करती है गुजराती भाषान्तर:
નશ્વરપણું જગતમાં સર્વત્ર નિસત્કૃષ્ટ અને નિર્વિશેષ રૂપથી સુપ્રમત્ત, સુખ અને પ્રમત્તપર ફટકો મારે છે.