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________________ १२६ इलि-भासियाई गुजराती भाषान्तर: અતઃ અબ્રુવ, અશાશ્વત સંસારમાં બધા આત્માઓને માટે સંસક્તિ અને દુઃખ જ છે. તે જાણીને હું જ્ઞાન, દર્શન, ચારિત્ર સ્વીકાર કરીશ અને આ પ્રકારે અનાદિ યાવતુ ભવમાર્ગનું ઉલ્લંઘન કરીને શિવ, શાશ્વત સ્થાનને પ્રાપ્ત કરીશ. टीका:-तस्मादधुवमशाश्वतमिदं संसारे सर्वजीवानां संसृतिकारणमिति ज्ञात्वा हान-दर्शन-चारित्राणि सेविष्ये। तानि सेचित्वा संसारकांतारं व्यतिपत्य शिवस्थानमभ्युपगतः स्थास्यामीत्यत्र निश्चयः । कतारे वारिमझे वा, दित्ते वा अग्गिसंभमे । तमंसि वाडधाणे या सया धम्मो जिणाहितो ॥१॥ अर्थ:-वन में, पानी में या अग्नि की ज्याला में अंधकार में या छोटे गांव में सर्वत्र सर्वज्ञ कथित धर्म साथ होना चाहिए। गुजराती भाषान्तर:-- વનમાં, પાણીમાં કે અગ્નિની જવાળામાં, અંધકારમાં કે નાના ગામમાં સર્વત્ર સર્વ કથિત ધર્મ સાથે હોવો જોઈએ. साधना की धारा सर्वत्र एक रूप से ही वहनी चाहिए । साधक गांव में हो या नगर में। उसके जीवन में एकरूपता होनी ही चाहिए। ऐसा नहीं है कि गांव की साधना कुछ दूसरी हो और शहर की कुछ दूसरी; तथा वन की साधना इससे भी निराली हो। शहर के चतुर श्रावकों के सामने हमारी साधना का स्वर तीन हो उठे। गांवों में ग्रामीणों की अबोधता का लाभ उठा कर अपने साधना को नीचे खर पर ले आए और धन की सूनी वीथिका में स्वतंत्र हो जाए। भगवान महावीर दशकालिक में साधक जीवन में एकरूपता लाने के लिए निर्देश करते हुए कह रहे है कि:से भिक्खु वा भिक्षुणी वा गामे वा नगरे वा रणे वा मरणे वा पुगो वा परिसागओ चा सुते वा जागरमाणे वा। साधक या साधिका गांव में हो या नगर में अथवा जंगल के वीरान प्रदेशों में हो, अथवा बह विशाल परिषद में ही क्यों न बैठा हो, वह सुषुप्ति में हो या जागरण में उसकी आत्म-साधना की धारा एक रूप से ही प्रवाहित रहे। अथवा प्रस्तुत गाथा का एक अर्थ यह भी हो सकता है कि साधक सूने जंगल में हो, सागर की जल धारा में फेंक दिया गया हो अथवा आग की लपटों में ही उसे फेंक दिया गया हों तब भी सर्वज्ञ कथित धर्म से वह विमुख हो जाना कदापि स्वीकार नहीं करेगा। . टीका:-बाधाणेत्ति पदस्पार्थो न जायते । “वाधान" इस पद का अर्थ अज्ञात है। प्रोफेसर शुकिंग लिखते हैं कि “तमंसि पाठ के आधार पर तम्मि होना चाहिए 1" परन्तु तमसि पद भी व्याकरणसम्मत है। "वटवन" शब्द यहां विशेष नाम के रूप में आया है, जब कि प्रस्तुत गाथा में वह विशेष नाम योग्य नहीं लगता है। साथ ही कान्तार वारि अग्गि और तमो शब्द केवल सामान्य विचार को लेकर आए हैं। ऐसी स्थिति में उसका अर्थ वाडे की अग्रह के रूप में होना चाहिए । कहीं पटचन का चन्द्राल अर्थ लिया गया है। परन्तु वह अर्थ कहीं भी व्यवहत नहीं है। धारंणी सुसहा चेव, गुरू मेसज्जमेव वा । सद्धम्मो सध्यजीवाणं, णि लोप हितंकरो॥२॥ अर्थ:-सर्वसहा पृथ्वी और महान् औषधिको प्राणिमात्र के लिए हितकर हैं। इसी प्रकार सद्धर्म भी समस्त प्राणियों के लिए सदैव हितप्रद है। प्रोफेसर जेकोबी ने अपनी पसंद की हुई कहानियों की अनुक्रमणिका में संशोधन भी किया है। गुजराती भाषान्तरः - સર્વસાહ પૃથ્વી અને મહાન ઔષધિઓ પ્રાણીમાત્રને માટે હિતકર છે, એ જ પ્રમાણે સારો ધર્મ પણ સમસ્ત પ્રાણીઓ માટે સદૈવ હિતપ્રદ છે, १. चारपेन्टियर की प्रत्येक बुद्ध कहानियाँ । ५.१५१ ।
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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