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चौबीसवाँ अध्ययन
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पासिता संजमेणं संजसिय तत्रेण अट्टविहकम्मरयमले विधुणित विसोहिय अपादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं वाउरंतसंसारकं तारं श्रीतिवत्तित्ता सिवम यल- मध्य मुख्य मन्या याहमणरावत्तियं, सिद्धिगतिणामधिजं ठाणं संपते अणामतद्धं सासतं कालं चिह्निस्सामिति ।
अर्थ :- ज्ञान से जान कर, दर्शन से देखकर और संयम से संग्रमिल होकर तुम से अष्टविध कर्मरज रूप मल को लाग कर आत्मा को विशुद्ध बना करें अनादि अनन्त दीर्घ मार्गवाले चातुरन्त संसार की वन वीथि को पार कर शिव अचल अ अच्रोगरहित अक्षय न्याबाध पुनरागमन निरपेक्ष, सिद्धिगति नामक स्थान को प्राप्त करूंगा और भविष्य में शाश्वत काल तक रहूंगा
गुजराती भाषान्तरः
જ્ઞાનથી જાણીને, દર્શનથી જોઈ બે અને સંયમથી સંમિત થઈને તપથી વિધ કર્મ રજ રૂપી મળમે ત્યજીને આત્માને વિશુદ્ધ અનાવીને, અનાદિ અનન્ત દીર્ઘ માર્ગ વાળા ચાતુરન્ત સંસારની વન માર્ગને પાર કરીને શિવ, અચલ, અજ=રોગરહિત અક્ષય, અભ્યાબાધ પુનરાગમન નિરપેક્ષ, સિદ્ધિગતિ નામના સ્થાનને પહોંચીશ અને ભવિષ્યમાં અનંત કાળ સુધી રહીશ.
टीका :- ज्ञानेन शाख्या दर्शनेन दृष्ड्डा संयमेन संयम्य तपसाऽष्टविधकर्मरजोमलं विधूय विशेोध्यानादिकं नवदीर्घाध्वानं चातुरन्त संसारकान्तारं व्यतिपत्य शिवमित्यादिविशेषितं सिद्धिगतिनामधेयं स्थानं संप्राप्तो अनागतध्वानं शाश्वतं काले स्थास्यामीति प्रतिबोधितस्य कस्यचिदध्यवसायः ।
आत्मा वासना को मन में लिए अनन्त बार मरा हैं किन्तु सम्यग् ज्ञान दर्शन और चारित्र को लेकर यदि देव का ब्याग करता है तो भन्न परम्परा की शृंखला को तोड देता है और शात शान्ति का पथिक हो जाता है ।
एवं से सिद्धे बुद्धे । गतार्थः ।
रामपुक्तीयज्झणं
रामपुत्र - अर्हतर्षिप्रोक्तं त्रयोविंशतितमं अध्ययनं
हरिगिरिभवर्षि प्रोकचौबीसवां अध्ययन
विश्वरूपी रंगमंच पर आत्मा नए नए अभिनय लेकर आता है। यद्यपि उसका स्वभाव ज्ञाता और ऋष्टा है, किन्तु वह स्वयं ही अभिनेता बन गया है और अभिनेता भी ऐसा जो रंग भूमि को निज भूमि मान बैठा है। यही मिथ्या विचार उसकी मंजिल को दूर ढकेलता जाता है और उसका हर कदम पथ को बढाता जाता है।
जिस क्षण उसकी तंद्रा भंग होती है तब वह समझ लेता है कि मैं विश्व रंगमंच का अभिनेता नहीं, द्रष्टा मात्र हूँ । - कषाय और वासना की गठरी सिरपर ले कर द्वार भटकना मेरा खभाव नहीं हैं। यह सारा नाटक ही गलत रूप से खेला जा रहा है। जिस क्षण आत्मा स्वरूप का बोध कर लेता है। उसी क्षण सारा दृश्य बदल जाता है। यही सब कुछ प्रस्तुत अध्ययन का विषय है ।
सव्वमि पुरा भइदाणिं पुण अभवं । हरिगिरिणा अरहता इसिणा बुझतं ॥
अर्थ :--- पहले यह सब कुछ भवितव्यतापेक्ष था । अब भवितव्य भावी भाव से अनपेक्षित है। हरगिरि अर्द्धतर्षि इस प्रकार बोले ।
१. नाणेण जागई भावे दंसणेण सह । चरितेण व गिष्टाइ तत्रेण परिसुदाई उत्तर अध्यय २८ गाथा ३५