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________________ १२२ इसि-भासियाई इमस्स खलु ममाइस्स असमाहियलेसस्स गंडपलिघाइयस्स गंडबंधणपलियस्स गडबंधणपरिघात करेस्सामि, अलं पुरेमरणं । तम्हा गंड-बंधण-पडियातं करेता णाणदसणचरित्ताई पडिसेविस्सामि । अर्थ:-मैं असमाधित लेश्या वाला है। अर्थात मेरी लेश्या शुभ नहीं है । राग द्वेष की प्रन्यि ने मुझे पराजित कर रखा है। उस ग्रन्थि से मेरी आत्मा बद है। अब मैं प्रन्थि बन्धन को तोड फेकुंगा। पहले मैं दुःख-मृत्यु अर्थात अकाम मृत्यु से मरा वही बहुत है । अब मैं प्रधिच्छेद कर के ज्ञान दर्शन चारित्र की आराधना करूंगा। गुजराती भाषान्तर: હ અનુચિત લેશ્યાવાળો છું. એટલે મારી લેગ્યા શુભ નથી. રાગ-દ્વેષની થિએ મને પરાજિત બનાવ્યો છે, તે જ ગ્રન્થિથી મારો આત્મા બંધાયેલો છે. હવે હું ચન્થિ બંધનને તોડીને ફેંકી દઈશ. પહેલા હું દુઃખ મૃત્યુ અર્થાત્ અકામ મૃત્યુથી મર્યો તે જ ઘણું છે. હવે હું ચન્વિચ્છેદ કરીને જ્ઞાન દર્શન ચરિત્રની આરાધના કરીશ. अप्रशस्त लेश्या और राग द्वेष की परिणति ही दुःख मूलक मृत्यु के मूल हेतु हैं। एक कहावत है कि 'जैसी मति वैसी गति' । जिसने अपने जीवन में जिसने अशुभ कर्म ही किए हैं, दूसरों की शान्ति भंग की है, अपनी शान्ति के लिए दूसरों को रुलाया है वह आत्मा कमी भी शान्ति पूर्वक नहीं मर सकती है। मृत्यु जीवन की परीक्षा का परीक्षा-फल है । अध्ययन और उत्तर पुस्तिका के ही आधार पर परीक्षा-फल आता है। जिसके जीवन की उत्तर कापियो गलत है उसका परीक्षा-फल कमी भी अच्छा नहीं आ सकता है। राम और देष की अन्थिया प्रगाद हैं । आत्मा राग-द्वेषाग्नि में झुलस रहा है। मृत्यु की पत्तियों में मी मन के उद्गार शान्त नहीं हुए हैं, इस अवस्था में मृत्यु सुन्दर नहीं हो सकती है। जिसका मन निर्वेर है वह मृत्यु की गोद में इस प्रकार सोएगा मानो निद्रा की गोद में सोया है । मन जर की अमि है, लता मह शान्त निदा भी नहीं पा सकता है। इस अवस्था में शान्त-मृत्यु उसके नसीब में कहाँ ! मृत्यु भी एक प्रकार की निद्रा है। उस निद्रा से श्रादमी जाग सकता है जब कि इस महानिद्रा में सोनेवाला पुनः नहीं उठ सकता है। इतना ही तो अन्तर है दोनों में। मृत्यु के क्षणों में स्मृति स्वच्छ हो जाती है। सारा जीवन फिल्म की तरह उसके सामने आ जाता है। यदि जीवन का इतिहास भलाई का इतिहास है तो मृत्यु के मुँह मे पहुंचते हुए भी उसके मुख पर सन्तोष की रेखा रहेगी। उसके लिए मौत मानो मो की गोद रहेगी। मौत उसके लिए वॉरन्ट नहीं, मान पत्र ले कर आएगी । । पर जिसके जीवन के इतिहास के पनों पर बुराई के काके निशान पडे हैं उसके लिए मौत मानो वॉरन्ट लेकर आई है। उसको देखते ही वह कांप उठता है। शान्तिपूर्ण नींद पाने के लिए चिन्ताओं को कोट की भौति उतार कर खूटी पर रोग देना चाहिए। इसी प्रकार शान्तिपूर्ण नींद पाने के लिए घर की गठरी को दूर करनी चाहिए। केवल निर्वेर मन ही शान्ति पा सकता है। इसीलिए ऋषि बोलते हैं कि मैं आज तक अशुभ लेझ्या और राग द्वेष की गठरी को सिर पर लेकर घूमता रहा हूं। वह गठरी मौत के समय भी मेरी छाती पर शिला की भाँति पड़ी है और में शान्ति पूर्वक मर भी नहीं सकता। भतः अब मैं उसको एक ओर पटक कर मेरे निज-भाव, ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना करूंगा। टीका:-इमस्स खलु ममीकारिणो भसमाहितलेश्या असमाहितमनोवृत्तिकस्य गंड इति प्राथ्यार्थे तेन परिधातितस्य बाधितस्य बंधनपरिघातस्येति पाठा शकीयैव गरबंधनप्रतिघातं करिष्यामि। भर्स पुरोमतेन दुःखं मरणमिति तस्मात् । पूर्वोक्तं कृत्वा ज्ञान-दर्शनधारिवाणि प्रतिसेमिष्ये । गतार्थः । गंड शब्द पंथी के अर्थ में आया है। तथा बंधन परिघात का पाठ शंकास्पद है। प्रोफेसर शुबिंग लिखते हैं कि: 'इमस्स करेस्सामि' बतलाता है कि वह सभी कठिनाइयों से दूर रहना चाहता है । आत्मा के बंधनों से भी दूर रहना चाहता है और ऐसा लगता है कि दूसरा गंड शब्द निकाल देना चाहिए। गेड शब्द उत्तराध्ययन की टीका में प्रन्थि अर्थ में आया है। आचारांग सूत्र में भी यह शब्द आया है। किन्तु उसका अर्थ यहाँ ठीक नहीं लगता है। पलिघाएइ शब्द यहां पर विशेष रूप से जोवने में आया है।
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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