SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रामपुत्र अर्हता प्रोक्त बीसवाँ अध्ययन मानव अपने जीवन के लिए सौ सौ विचार रखता है। वकील बनना है उसके बाद यह करना है वहाँ जाना है । किन्तु कभी भी अपने मृत्यु के विषय में नहीं सोचता है। जो कि सृष्टि का अनिवार्य नियम है। मृत्यु से राव डरते किन्तु मृत्यु डरने की बदलने की वस्तु नहीं है। उससे हम अपना जीवन बदल सकते हैं। भारत के प्रधान मंत्री कहते हैं कि मृत्यु से नया जीवन मिलता है। जो व्यक्ति या राष्ट्र भरना नहीं जानते हैं वे जीना भी नहीं जानते हैं । - जवाहरलाल नेहरू 1 ओ मरना जानता है उसके लिए मौत भयंकर भी नहीं होती है। विश्वकति रवीन्द्रनाथ ने जीवनदर्शन में ठीक ही कहा है: Death's stamp gives value to the coin of life, making it possible to buy with life what is truly precious - विश्वकवि रवीन्द्रनाथ. जीवन के सिक्के को मौत की छाप मूल्यवान बना देती है। इसी लिए जीवन देकर वास्तव में मूल्यवान वस्तु खरीदना संभव हो जाता है । मृत्यु का तत्वदर्शन ही प्रस्तुत अध्ययन का विषय है । सिद्धि || दुबे मरणा असि लोए एवमाहिति तं जहा - सुहमतं चैव दुहमतं प्येव । रामपुवेण अरहता हसिणा इतं । अर्थ :- इस लोक में दो प्रकार की मृत्यु बताई गई है । जैसे कि सुख रूप मृत्यु और दुःख रूप मृत्यु । राम पुत्र इस प्रकार बोले । गुजराती भाषान्तर: આ લોકમાં મરણુના એ પ્રકાર માનવામાં આવે છેઃ સુખરૂપી મૃત્યુ અને દુઃખરૂપી મૃત્યુ, રામપુત્ર અદ્વૈતષ आम मोल्या. जन्म लिया हुआ प्राणी मरता है। सिद्धान्तों में मतभेद हो सकते हैं, परन्तु मौत में दो मत नहीं होते हैं । किन्तु मृत्यु की भी कला होती है। एक की मृत्यु दुनियां के लिए आशीर्वाद रूप बनती है जब कि दूसरे का जीवन भी अभिशाप होता है। जिसके जीवन में खुशबू है, वह जब मरता है तो कोटि कोटि हृदय से पड़ते हैं। दूसरे भी एक प्रकार का व्यक्ति है जो कि जब अपनी जीवन लीला समाप्त करता है तम जनता के मुंह से सहसा निकल पढता है कि 'अच्छा हुआ, गांव की उपाधि दूर हो गई !' यहाँ पर जिन दो प्रकार की मृत्यु का निरूपण किया गया है एक सुख रूप मृत्यु और दूसरी दुःख रूप मृत्यु है । जिसका जीवन सुखमय रहा है जिसने अपने जीवन में शान्तिमय कार्य किया होगा, दूसरों के पथ में भी जिसने शान्ति के फूल बिछाए होंगे उसकी मौत भी सुखरूप होगी। इसके विपरीत जिसने दूसरे के जीवन में आग लगाई होगी और स्वयं मी जीवन भर उसी आग में जलता रहा होगा, अतः उसका जीवन दुःखमय है और उसकी मृत्यु भी कभी सुखमय नहीं होगी । आगम की परिभाषा में इसको 'पंडित मरण' और 'बाल मरण' का नाम दिया गया है। संरिमेय दुवे ठाणा अक्खाया मरणंतिया । कारणं चैव सकाममरण सहा । - उत्तरा० अ० ५ गाथा २ संसार में दो प्रकार के मानव होते हैं। एक तो वे हैं ओ मौत को देख कर रोए, चिल्लाए और मर गए। दूसरे वे है, जिन्होंने मौत को देखते ही वीरता के साथ उसका स्वागत किया और अभय की प्रतिमा बन कर मौत की गोद में सो गए। स्थूलभाषा में दोनों ही मरे हैं । किन्तु चिन्तक की आंखों में एक को मौत ने मारा हैं और दूसरे ने मौत को मारा है । संसार के महापुरुष इसी अर्थ में मृत्युजेता हैं। टीका :- द्वे मरणे सिलोके एवमाख्यायते, तद् यथासुखमृतं चैव दुःखमृतं चैत्रात्र विज्ञप्तिं व्याख्यानं बवीमि । गतार्थः । प्रोफेसर विंग् लिखते हैं कि मत और मृत में शब्द की कीड़ा है। जो कि जान बूझ कर ही रखे गए हैं। १६
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy