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इसि भासियाई
अर्थ :- जिस ग्राम या नगर में स्त्रियाँ ही बलवती हैं बेलगाम घोडे की समान है। जहां पर स्त्रियों का शासन है वह ग्राम धिक्कार का पात्र है। वाच्य हैं ।
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हिनहिनाइट या अपने दिनों में मुंडन के प्रस्तुत अध्ययन का प्रथम श्लोक यहां भी
जिस ग्राम और नगर में त्रियों का शासन है, जहां का विलासी पुरुष स्त्रियों का गुलाम है वह छोटा ग्राम हो या बडा नगर कभी भी प्रगति के पथ पर नहीं चल सकता है। वह नगर पौरुषहीन हो जाता है। वह बेलगाम के घोडे की हिनहिनाइट की भांति शब्द करता है । पर उसकी राणी में पौरुष का तेज नहीं है । वह अपनी दिशा को बदल नहीं सकता उसके कार्य-कलाप वैसे ही होते हैं। जिस प्रकार से बिना पर्व का मुंडन |
स्त्रियां अपने स्वाभिमान और सदाचार की रक्षा में बलवती हों यह किसी भी देश के अपमान या कलंक की बात नहीं है । अपि तु कलंक की कहानी तब होगी जहां पर्दे में गुडियाँ-सी बनी नारियों अपने शील की रक्षा में असमर्थ होती हैं गुंडे और मव्वालियों के भय से घर के बाहर न निकल सकती हो। अपनी रक्षा के लिए जिनके पास आंसू की दो बडी बूंदों के अतिरिक्त दूसरा कोई साधन न रह गया हो और जिस के देश कार्य के लिए यह कहना पड़े कि
"अछा जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में हैं दूध और भांखों में पानी ॥"
- यशोधरा - मैथिलीशरण गुप्त |
देश की यह हालत गौरव की नहीं, अपि तु रौरव की होगी। देश की नारियां शेरनी हो, उनकी आंखों में इतना तेज हो कि मव्वाली उनको देखकर ही कांप उठे। जिस दिन से भारत की रमणियों का यह तेज गया, उसी दिन यह देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा गया || क्योंकि कायर माता की संतान चूहों से भी डरती हैं। शेरनी का पुत्र ही शेर से खेल सकता है ! |
पर यहां पर अतर्षि द्वारा किया गया स्त्रियों का विरोध यही अभिप्राय रखता हैं कि जहां का पुरुष समाज वासना के दल दल में फंस कर स्त्रियों का गुलाम बन गया है यह देश कभी भी उन्नति नहीं कर सकता हैं।
टीका :- यत्र तु प्रामेषु नगरेषु वा स्त्री बलवती तदनश्वस्य गुन। देषाशब्देव पर्वरहितेषु वा दिनेषु मुंडनमिव भवति । गतार्थः ॥ ७-८ ॥
घिर्सि वाला प्रथम
यहां भी चाच्च है ।
डाहो भयं ता सातो विसातो मरणं भयं ।
छेदो भयं च सत्यातो, चालातो दसणं भयं ॥ ९ ॥
अर्थ :-- अभि से जलने का भय है। विष से मरने का भय है। शस्त्र से छेदन का भय है। और सर्प से उसने का भय है ।
गुजराती भाषान्तर :---
અગ્નિથી બળવાનો ભય છે, ઝેરથી મરવાનો ભય છે, શસ્ત્રથી કાપવાનો ભય છે અને સર્ષથી કરડવાનો ભય છે. टीका :- हुताशा भयं दाहो, विषान्मरणं शस्त्राच्छेदो प्याला दशनं । गतार्थः ॥ ९॥
चारों वस्तुएँ भयप्रद हैँ । आग जलाती हैं, विष मारता है, शत्र छेदन करता है और सर्प डस लेता है । जो इन यों पर विजय पाता है वहीं अभय हो सकता है। जिसने आत्मा की अमरता को यथार्थरूप से समझ लिया है वह शरीर की मृत्यु से कभी भी नहीं डर सकता और वह दुनियां की किसी भी शक्ति से नहीं डर सकता है।
संकीणीयं जं वत्थु अपडिकारमंच य ।
तं वत्युं सुड्डु जाणेजा, जुजंसे जे गु जोइता ॥ १० ॥
अर्थ :- जो वस्तु शंकास्पद है और साथ ही उसका प्रतिकार में भी शक्य नहीं है, उस वस्तु के उपभोक्ता को उसका ठीक ठीक परिज्ञान होना चाहिए ।
गुजराती भाषान्तर :
જે વસ્તુ શંકાસ્પદ છે, અને સાથે સાથે તેનો પ્રતિકાર પણ અશક્ય છે, તે વસ્તુનો ઉપભોગ લેનારને તેનું ફીક ડીક બાન હોવું જોઈ એ.
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