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________________ ११६ इसि भासियाई जिस नारी के शासन की ओर से करते है, मन के अध्ययन से यह मालूम होता है कि एक बार रोम में इतनी वासना बढ़ गई थी कि वहाँ का भक्त कलाकार प्रभु की मूर्ति बनाता था तब भी उसके लिए छबि की सर्व क्षेत्र नर्तकी या वेश्या की रहती थी । इसी लिए रोम जैसा देश इतनी जल्दी पतन के गर्त में गिर गया । स्त्री भी शासन कर सकती है, यदि उसमें योग्यता है। राज्य व्यवस्था का उत्तरदायित्व निभाना भी एक कला है । अतर्षि का उसले विरोध नहीं है। विरोध जनता के दिल और दिमाग में स्त्री और वासना के एकाधिपत्य से है। क्यों कि जो देश वासना का गुलाम है वह सारे विश्व का सचमुच गुलाम है । टीका:-धिक तेषां ग्राम-नगराणां येषां स्त्रियः प्रणायिकाः, ते चापि धिक्कृताः पुरुषा ये स्त्रीणां वशंगताः । मतार्थः ॥ १ ॥ गाहाकुला सुदिव्वा व, भावका मधुरोदका । फुल्लाच पडमिणि रम्मा बालककंता व मालवी ॥ २ ॥ हेमा गुहा ससीहा वा, माला वा वञ्झकपिता । सविसा गंधजुती या, अंतोदुट्ठा व वाहिणी ॥ ३ ॥ गन्ता मदिरा वा वि, जोगकण्णा व सालिणी । णारी लोगम्मि विष्णेया, जा होजा सगुणोदया ॥ ४ ॥ अर्थः- नारी सुदिव्य कुल के गाथा के सदृश है, वह सुवासित मधुर जल के सदृश है, विकसित रम्य पद्मिनी के सदृश है और व्यालाकान्त मालवी के सदृश है । वह स्वर्ण की गुफा है, पर उसमें सिंह बैठा हुआ है । वह फूलों की माला है, पर विष पुष्प की बनी हुई हैं। दूसरों के संहार के लिए वह विध मिश्रित गंध-पुटिका है। वह नदी की निर्मल जलधारा है, किन्तु उसके बीच में भयंकर भंवर है, जो प्राणापहारक है। वह मत्त बना देने वाली मदिरा है । सुन्दर योगकन्या के सहश है । यह नारी है, स्वगुण के प्रकाश में यथार्थ नारी है। गुजराती भाषान्तर : નારી સુદિય્ કુલની કીર્તિ જેવી છે; સુગંધયુક્ત મધુર જળ જેવી છે, વિકસિત રમ્ય પદ્મિનીની જેવી છે આમ છતાં તે સાપથી વિંટાયેલ માલતી વેલડી જેવી છે. તે સ્વર્ણની ગુફ ા છે, પરંતુ તેમાં સિદ્ધ ભેડી છે. તે ફૂલોની માળા છે, પરંતુ તે ઝેરી પુષ્પોની અનેલી છે. ખીજાઓના સંહાર માટે તે ઝેરમિશ્રિત ગંધયુટિકા છે. તે નદીની નિર્મળ જળધારા છે. પરંતુ તેની વચમાં ભયંકર ભ્રમરો છે, જે પ્રાણગ્રાતક છે. તે ઉન્મત્ત અનાવી દેનાર મદિરા છે. સુન્દર યોગકન્યા સમાન છે, જેને નારી કહેવાય છે. સ્વગુણના પ્રકાશમાં યથાર્થ નારી છે. टीका :- सुदिष्या भावका प्रेक्षणीया मधुरोदका पुष्पिता रम्येष पद्मिनी माहाकुला मालतीय, ग्यालाक्रान्ता, हैमगुहेव साहा, मालेव बध्यपिता, गन्धयुक्तिरिय सविषा वाहिनीव मदी सेना चाष्टा, मदिरेष गरान्ता, योगकश्या स्वीरिव योगपरा शालिनी गृहिणी, एवं नारी लोके बिज्ञेया भवेत् स्वगुणोदया प्रकटीकृता श्रीदोषाः ॥ २-४ ॥ नारी कठोरता और कोमलता का समन्वय है । अतर्षि नारी के विविध रूपों का चित्रण बाहरी सौन्दर्य निम है। वह सुवासित जल-धारा खिलती हुई पद्मिनी है। बद मालती भी है लिपटा हुआ है। वह स्वर्ण गुफा-सी है उसका बाहरी आकर्षण बहुत ज्यादा है, किन्तु उसमें सिंह बैठा हुआ है। करते हैं । नारी का किन्तु उस पर सर्प यहां स्त्री के दोनों रूप बताए गए | नारी पद्मिनी और मालती की माला के समान है। वह गुफा-सी है, जिसमें क्रूरता का साक्षात् रूप सिंह दहाड़ रहा हैं। सुशिक्षित और सदाचारिणी नारी सुवासित पद्मिनी के समान है। उसके जीवन और स्वभाव से शील की सौरभ फैल रही है। वह माता मातृभूमि सी पवित्र है। वह पृथ्वी की भांति सर्वंसहा है। पृथ्वी पर कोई गंदगी कर रहा है, कोई उसको खोद रहा है, कोई उसपर अणुबम के धड़ाके कर रहा है, फिर भी वह मौन हो कर सब कुछ सहन कर रही है। इतना ही नहीं, मनुष्य उसको खाद के बदले में गंदे पदार्थ देता है । किन्तु धरित्री उसके बदले में जीवन-दायी खाद्य पदार्थ देती है। यही माता का कार्य हैं। वह तिरस्कार और अपमान सहती है तथा उसके बदले में सेवा और प्यार करती है । •
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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