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बाइसा अध्ययन
११५ टीका:--- धर्मा इति ग्रामधर्मा मैथुनाभिलाषा: ग्रामधर्माः पुरुषादिका पुरुषप्रवराः पुरुषज्येष्ठाः पुरुषवाधिकृत्य कल्पिताः प्रयोतिताश्च पुरुषं समन्वागता भवन्ति । पुरुषमेवाभियुज्य पुरुषमवेक्ष्यमाणास्तिष्ठति, यथा नामारती ति गंडविशेषः म्याच्छरीरे जाता शरीरे वृद्धाः शरीरं समन्यागता शरीरमेवाभियुज्य तिष्ठति ।
धर्म अर्थात् प्रामधर्म विषयाभिलाषा पुरुषादिक पुरुषप्रमर पुरुषज्येष्ट ऐसे पुरुष को लक्षित करके ने ग्रामधर्म कहे गए हैं। वे पुरुष के निकटवर्ती कहे गए है। चे प्रामधर्म पुरुष को नियोजित कर के उसकी अपेक्षा करते हैं। जैसे अरतिग्रंथि विशेष शरीर में पैदा होती है और शरीर में ही वृद्धि पाती है।
टीकाकार का मत भिन्न है, वे धर्म से यहां पर प्रामधर्म अर्थात् विषय की अभिलाषा लेते हैं।
एवं गंडे वम्मीके थूमे रुक्खे वणसंडे पुक्खरिणी णवरं पुढवीय जाता भाणियन्धा, उदगपुक्खले उदगं णेतब्बं ।
अर्थ:-इसी प्रकार गोठ प्रथि बाल्मिक स्तूप वृक्ष-वन खंड पृथ्वी में पैदा होते हैं, पृथ्वी में रक्षण पाते है और पृथ्वी से वृद्धि पाते हैं । पुष्करणी कुवाँ आदि पानी से संबंध रखते है।। गुजराती भाषान्तर :__ प्रमाणे २is (40-4) पानि , ! - Pun , alihi x २६ पाने છે ને પૃથ્વીમાં જ વૃદ્ધિ પામે છે. પુષ્કરણ વાવડી આદિ પાણી સાથે સંબંધ રાખે છે.
टीका:-एवं गई स्फोटो शरीरे जात इत्यादि वाल्मोकः स्तूपो, वृक्षो वनखंडपृथ्वीका जातः पुष्करिणी पृथिव्यां जाता पुष्करोदके जातः ।
से जहा णमते अगणिकाए सिया अरणीय जाते जाव अरणि चेव अहिभूय चिट्ठति एवमेव धम्मा वि पुरिसादिया तं चेव ।
अर्थ:-जैसे अनि अरणी में पैदा होती है और अरणी का राहारा लेकर रहती है। इसी प्रकार धर्म पुरुषादि के आश्रित रहता है। गुजराती भाषान्तर:
જેવી રીતે અગ્નિ અરણીમાં પેદા થાય છે અને અરાણીને આશ્રય કરીને જ રહે છે, તે જ પ્રમાણે ધર્મ પુરુષત્વાદિને આશ્રિત થઈ રહે છે. ___ जैसे आग अरणी के काष्ठ में व्यापक रूप में रहती है, इसी प्रकार धर्मपुरुषादानी महाराज पार्श्वनाथ के आश्रित रहता है।
____ अथवा जैसे बीज में विराट वृक्ष समाया रहता है और अग्नि अरणी में समाई हुई रहती है इसी प्रकार मानव मन में वासना छुपी रहती है। कहा जाता है कि बालक निष्पाप रहता है । यह ठीक है, क्योंकि उसके मन में उस समय किमी प्रकार की वासना नहीं रहती है, फिर भी शासना के बीज तो वहां मौजूद ही रहते हैं। वे ही बीज समय पाकर विशाल रूप लेते हैं। वह वयस्क होता है तब सब प्रकार के हल प्रपंच सीख जाता है। उसकी वृत्नियाँ स्पष्ट हो जाती हैं। वृतियाँ मानव मन में सुप्त रहती हैं। अनुकूल संयोग को पाकर जागृत हो जाती हैं। टीका :-अग्निकायो अरण्याजातो अरणिमेवामिभूय तिष्ठति एवमेव धर्मास्तिष्ठन्ति ।
धिसेसिं गामणगराण, जेसिं महिला पणायि ।
ते यावि घिकिया पुरिसा, जे इस्थिणं चसं गता ॥१॥ अर्थ:- ग्राम और नगर विकार के पात्र हैं, जहां पर नारी शासिका है। वे पुरुष भी धिक्कार के पात्र हैं. जो नारी के वश में हैं।
जो देश स्त्रियों का गुलाम है,सुरा और सुन्दरी ही जहां का जीवन-लक्ष्य है वह देश निश्चय ही पतन के कगारे पर है । जहा के जन-जीवन में वासना के दौर चलते है, जन-मानस पर स्त्रियों का शासन है, जहां के निवासी वासमा के गुलाम बन चुके हैं, फिर उन्हें दूसरी गुलामियां को निमन्त्रण-पत्र भेजने की आवश्यकता नहीं रहेगी। यहां पर अतिर्षि