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________________ बाइसवां अध्ययन अर्थ:--औषधियों की रचना, सैयोग मिलाना और विद्याओं की साधना अज्ञान के द्वारा इन सभी कार्यों में सफलता नहीं मिल सकती है। गुजराती भाषान्तर:આ દવાની યોજના, દર્દીની હાલતને પરિચય કરી લેવો અને વિદ્યાની સાધના કે બીજું ગમે તે કામ હોય (પણ તે વસ્તુનું જ્ઞાન ન હોય તો) અજ્ઞાનથી આ કેઈપણ કાર્યમાં સફળતા નથી મળી શકતી. एक बीमारी के लिए सौ दवाएं होती हैं । कौन-सी औषधि किस रोगी को शीघ्र लाभ पहुंचा सकती है, इसका ज्ञान हुए बिना चिकित्सक की चिकित्सा सफल नहीं हो सकती। संयोगों की सैयोजना में भी ज्ञान की आवश्यकता रहती है । विश्व की प्रत्येक नस्पति औषधि के लिये उपयोगी है। वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर मंत्र-मय है। किन्तु उसकी संयोजना का ज्ञान न होने के कारण अमृत भी बिष बन सकता है । स्वर और व्यंजनों के उन्ही अक्षरों से कमनीय कविता की सृष्टि हो सकती है। जब कि किसी के अपमान और तिरस्कार में भी वे ही अक्षर प्रयुक्त होते हैं। संबोजना में ही तो चमत्कार है। विद्याएँ सब कुछ उपलब्ध हैं, किन्तु साधना के परिज्ञान के अभाव में कमी सिद्धि नहीं मिल सकती । सफलता को असफलता में बदल देने वाला अज्ञान ही है। टीका:-औषधानां बिन्यासः, संयोगाना योजनं, मेषजाना मिश्रण, विद्यान व साधनं अशानेन न सिध्यति, सिध्यति तु ज्ञानयोगेम । विण्णासो ओसहीणं तु, संजोगाणं घ जोयणं । साहणं वा विविजाण, णाणाजोगेण सिज्मति ॥१०॥ अर्थ:--औषधियों का निर्माण तथा औषधियों की व्यवस्था, संयोगों की संयोजना, और विधाओं की साधना ज्ञान के द्वारा ही संभवित है। गुजराती भाषान्तर: દવાનું નિર્માણ તથા દવા આપવાની યોજના, સંયોગને ખ્યાલ કરી તેનો ઉપયોગ અને વિદ્યાની સાધના જ્ઞાન દ્વારા જ સંભવિત છે. ___ सफलता का द्वार ज्ञान है। साध्य की ओर कदम बढाना है, किन्तु साधन का परिज्ञान नहीं है, तो यह साध्य तक पहुंच नहीं सकता है। जिले गांव का नाम याद रह जाए परन्तु उसका रास्ता भूल जाए तो वह अपने लक्ष्य तक पहुंच नहीं सकता। पर्व से सिद्ध बुद्ध० गतार्थम् । __ गाहाचइज नामज्झयणं समत्तं गाथापति अतिर्षि प्रोक्त एकविंशतितमं अध्ययन दगभाली-अहंतर्षि-प्रोक्त बाइसवां अध्ययन मुक्ति का लक्ष्य बनाने वाला साधक बंधन को पहचाने । जो वासना से बंधा है वह पाश में बद्ध है। वासना से हटने के लिए प्रथमतः मन को अनुशासित करना होगा। घासना से बचने के लिए साधकों ने नारी की भर्त्सना की है। कोई कवि तो उसे नागिन बता गए हैं। प्राचीन कबि का एक पथ है कि "नागिनी-सी नार जानी। पुरुष कवि नारी को नागिन" बना सकता है तो नारी कवियित्री पुरुष को नाग बना सकती है। वास्तव में न तो नारी नागिन है, न पुरुष नाग है। किन्तु मन में जो वासना पैठी है वही नागिन है। उसका डसा हुआ व्यक्ति कमी उठ नहीं सकता है।
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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