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हसि भासियाई
का अर्थ ज्ञान का अभाव ही नहीं है, बल्कि अयथार्थ शाम हो अज्ञान है । आमा वरवस्तु में अपनी आत्मीयता का विस्तार करता है जब उसका वियोग होता है तम शोक के सागर में हूमता है। 'पर' वस्तु में 'सर' का अबोध ही अज्ञान है, अन्यथा - ज्ञान आत्मा का स्वभाव है, वह कभी भी उससे पृथक नहीं हो सकता है। किन्तु आत्मा की राग-द्वेषात्मक परिपतियाँ ही ज्ञान को अज्ञान में परिणत करती हैं।
अण्णाण अहं पुण्यं दीहं संसारसागरं । जम्म- जोणि-भाव से सरंतो दुक्खजालकं ॥ ४ ॥
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अर्थ:- प्रश्न: अन्न के द्वारा ही मैंने दुःखजाल में फंसकर जन्म योनि के भय रूप आवर्तील दीर्घ संसार में
भ्रमण किया ।
गुजराती भाषान्तरा -
અજ્ઞાનના કારણે જ હું દુઃખરૂપી જાળમાં ફસાઈને જન્મ-યોનીના મય રૂપ ભમરાવાળા દીષે (લાંબા ) સંસાર-સાગરમાં ભમતો રહ્યો છું.
रूप युक्त आत्मा संसार में परिभ्रमण क्यों जन्म लेता है। किन्तु भेड के साथ रह कर वह
आत्मा का रूप और बंधनाती है फिर न होगा कि शुद्ध करता है ? इसका उत्तर है अज्ञान । सिंह का बच्चा सिंह का वीरत्व ले कर अपने आप को भेट मान बैठता है और दिन रात मेडों के साथ घूमता गहरिया भेटों के साथ उसे घुमाता है। मेटों को जब पीटता है तो कभी कभी दो चार डंके सिंह शाक्य पर भी जमा देता है। वह चीखता है और आगे जाने वाले मेटों में जा मिलता है। सिंहशावक को ठंडे इस लिए खाने पडे कि उसे अपने निज रूप का पता नहीं है। सिंह क तक अपने आप को भेड मानता रहेना, गजरिए के डंडे उस पर पढते ही रहेंगे। पर जिस क्षण का मान हो जाता है कि "मैं इधर उधर भटकने वाला और गडरिये के डंडे से चलने वाला राजा हूं" इतना समझ लेने के बाद वह एक ही दहाक मारेगा तो सभी भेजें भाग नहीं होंगी छूटकर गिर जाएगा और वह भाग कर घर का राखा लेगा।
उसको अपने निज रूप नहीं में वन का गरिए के हाथ से डंडा
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आत्मा जब तक अपने आप को कूकर शंकर के रूप में देखता रहता है तब तक उसके ऊपर दुःख और दारिद्र्य के डंडे पड़ते ही रहते हैं। जब तक वह अपने आप को गुलाम मानता रहेगा तब तक कठोर शासक का डंडा उसके मस्तक पर पड़ता ही रहेगा। किन्तु जिस क्षण आत्मा अपने वास्तविक रूप को जान लेता है कि कर-कर रूप मेरा नहीं है। देह मी मैं नहीं हूं मौत देह को मार सकती है मुझे नहीं मेरा स्वरूप शुद्ध बुद्ध है परिणतियों की भेजें भाग खड़ी होंगी और वह स्वतंत्रता होकर स्वभाव परिणति का दीवे पातो पर्यगस, कोसियारस्स बंधणं । किंपाकलणं चैव अण्णाणस्स णिदंसणं ॥ ५ ॥
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इस एक ही दहाड से समस्त विकारी भोक्ता हो जायगा ।
अर्थ :- उत्तर :- पतंग का दीपक पर गिरना, और कोशिकार रेशमी कीडे का बंधन और किंनाक फल का भक्षण अज्ञान को ही प्रकट करता है ।
गुजराती भाषान्तर :
પતંગિયાનું ક્રિયાપર પડવું, અને કોશિકાર-કોરીઢા નામનું રેશમી કીડાનું બંધન અને કિંપાક (એવી ) ફળનું લક્ષણ એ બધાં કાર્યો કર્યાં પ્રકટ કરે છે.
जलती हुई दीपशिखा पर पतंग गिरता है और निठुर दीपक उसकी राख बना देता है। रेशमी कीडा अपने ही रेशमी तारों से बंधता है और फिर उससे युक्त होने के लिए छटपटाता है। मोला मानव जीव को मीठे लगने वाले किपाक फल को प्रेम से खाता है किन्तु केही मीठे फल चार घंटे के अन्दर उसके रंग में जहर फैला देते हैं और कुछ क्षण
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में ही उसका जीवनदीप बुझ जाता है। ये कहानियां आत्मा के अज्ञान को ही अभिव्यक्त करती है
१ टीकाकार कोशिकार को विशेष मानते है पर यह केशिकारीसार अर्थात् रेशमी फिदा है प्रस्तुत सूत्र के आठवें अध्ययन में भी यह पद आता है । " कोसारीडेव कीडेव जहार बंध" आठवां अध्ययन |
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