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इसि-भासियाई
पति पुत्र वह कुशल इंजिनियर था कि जिसने उस प्रवाह की गति को दूसरी ओर मोड दिया । "गाथापति-पुत्र' शब्द पारिवारिक संपन्नता का ध्वनि रखता है । यौवन के प्रांगण में प्रवेश करते हुए लक्ष्मी के पायलों की झंकार उसकी आत्मा को वासना से बांधने के लिए पर्याप्त थी। किन्तु साधना की लहरों ने उन्हें बंधने नहीं दिया। इसीलिए आगमकार ने तक्षण विशेषण के साथ अहंता का स्मरण किया है।
अपणाणमूलकं खलु भो पुध्वं न जाणामि न पासामि नोऽभिसमावेमि नोऽभिसंयुज्झामि, नाणमूलकं खलु भो इयाणि जाणामि पासामि अभिसमावेमि अहिसंवुज्झामि ।
अर्थ:--पहले मेरा जीवन जान अन्धकार में था, अत: पहले मैं नहीं जानता था, न देखता ही था, न मैं सम्यक प्रकार से जानता ही था, न मुझे उसका अनमोध ही था। अब ज्ञान के प्रकाश से मेरी आत्मा आलोकित है। अतः मैं अभी जानता हूं, देखता हूं, पदार्थ सम्यक अवबोध रखता है, और उसका यथार्थ ज्ञान भी मैं रखता है। गुजराती भाषान्तर:
હમણા સુધી મારું જીવન અજ્ઞાનના અંધકારમાં હતું, આથી પહેલાં હું જાણતો ન હતો, જે ન હતું, ન હું સારી રીતથી જાણતો હતો, ન મને સમજાણ હતી. પણ હવે જ્ઞાનના પ્રકાશથી મારો આત્મા પ્રકાશિત થયો છે. હવે હું જાણું છું, જેઉં છું, પદાર્થોનું સમ્યકુ સારી રીતે જાણું છું અને તેનું યથાર્થ જ્ઞાન પણ મને થયું છે.
अज्ञान यह अंधेरी रात है जिसकी कालिमा में हीरे की चमक और कंकर की बदरूपता एक समान हो जाती है। अन्धकार में पत्थर भी हीरा है और हीरा भी पत्थर है। दोनों का एक मोल है, एक तोल है। उजाले में परख संभव है। असली और बनावट हीरे का मेद प्रकाश ही बताता है; इसी लिए जहां अज्ञान है, वहां अन्धकार है और अन्धकार अपने आप में एक विपदा है।
टीका:-नाई पुरा क्रिचिजानामि सर्वलोके-अज्ञानमूलं ज्ञानं कारणं यथा तथा खलु भो पूर्व न जानामि न पश्यामि नाभिसममि नाभिमबोधामि । ज्ञानमूलं खलु भो इवानी नामानि यावदभिसंबोधामि । गतार्थः। ___ अण्णाणमूलयं खलु मम कामे हिं कि करणिज, णाणमूलयं खलु मम कामेहिं अकिश्चमकरणिज । अण्णाणमूलय जीवा चाउरतं संसारं जाव परियसि, णाणमूलयं जीवा चाउरंतं जाच बीयीवयंति, तम्हा अगणाण परिवन णाणमूलकं सब्बदुक्खाणं अंतं करिस्सामि, सम्वदुक्खाणमंत किच्चा शिवमचल जाव सासतं चिट्ठिस्सासि ।
अर्थ:-ज्ञानविहीन अवस्था में मैं ने काम के वश में होकर कार्य किए हैं । ज्ञानमूलक अवस्था में मेरे लिये काम से प्रेरित होकर कोई भी काम अकरणीय है । उस ज्ञान विहीन आत्माएँ चातुरन्त संसार अरण्य में परिभ्रमण करते है। शानमूलक आत्माएँ चातुरन्त संसार की कंटीली राह को पार करते हैं। अतः अज्ञान का परित्याग करके में ज्ञान द्वारा समस्त दुःखों की परिसमाप्ति करूंगा और समस्त दुःखों का अन्त कर के शिव अचल यावत् शाश्वत स्थान को प्राप्त करूंगा।
गुजराती भाषान्तर:
અજ્ઞાનાવસ્થામાં શું કામને વશ થઈને ઘણુ કાર્યો કર્યા છેજ્ઞાનયુક્ત અવસ્થામાં મારે માટે ક્ષમથી પ્રેરિત થઈને કોઈ પણ કાર્ય કરાય (નકરવા યોગ્ય) છે. જ્ઞાન વગર આત્માઓ ચાતુરન્ત સંસારરૂપી અરણ્ય ( ગહન ર) માં ફરે છે. જ્ઞાનમૂલક અભિઓિ ચાતુરન્ત સંસારના કાંટાવાળા રસ્તાને ‘પાર કરે છે. અજ્ઞાનને ત્યાગ કરીને હું જ્ઞાન દ્વારા બધાં દુઃખોની સમાપ્તિ કરીશ અને બધા દુ:ખોને અંત (નાશ) કરીને શિવ (કલ્યાણ) અચલ શાશ્વત સ્થાનને મેળવીશ,
जो अज्ञान है वहां वासना है। शान विहीन आत्मा काम के इशारों पर नाचता है। जब कि ज्ञानी की इच्छाएँ उसके इशारों पर चलती है। दोनों में इतना ही अन्तर है। एक वासना का गुलाम है, दूसरे के लिए वासना सेविका है। यही कारण है, कि वासना के संकेत पर कदम उठाने वाला आत्मा अपने हर कदम के साथ अशान्ति को निमन्त्रण देता है। उसका प्रत्येक कार्य भव-परम्परा की विषैली लता का एक बीज है। जहाँ ज्ञान है, वहां वासना का अभाव है, दुःखों का उपशमन हैं । ज्ञानी आत्मा के शाश्वत सुख का वह सम्राट है, और वह समस्त दुःख-परम्परा का मूलोच्छेद करके शिव शाश्वत आत्मस्थिति को प्राप्त करता है।
टीका:-अज्ञानमूलं खलु मम कामैः कृत्य कारणीयम् , ज्ञानमूल खलु मम कामरकृत्यं अकारणीयम् । भशानमूल जीवाश्चातुरंतसंसार परिवर्तन्ते, ज्ञानमूलं जीवास्तं व्यतिपतनित, तस्मादज्ञान परिवयं ज्ञानमूलं सर्वदुःखानामन्तं करिष्यामि, कृया शिवमचलं यावपळाश्वतं स्थानमभ्युपगतः स्थास्यामि । गतार्थः ।