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इस - भासियाई
उत्तर :- स्नोस्कट उसे कहते हैं, कि जिसके द्वारा अन्य शास्त्रों की दृष्टान्त गाथाओं से जो अपने पक्ष की उद्भावना में निरत रहता है। शास्त्र मेरे ऐसा कह कर दूसरे की करुणा को नष्ट करने वाली बात कहता है वहा स्टेनोत्कट कहलाता है ।
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गुजराती भाषान्तर :
प्रश्नः - भगवन् । तेस्तेनोट होने थे ?
ઉત્તર:—સ્તનોત્કટ તેને કહે છે કે જેનાથી ખીન્ત શાસ્ત્રોની દ્રષ્ટાન્તગાથાઓથી જે પોતાના પક્ષના પ્રતિપાદનમાં હંમેશા તત્ત્પર રહે છે. આ શાસ્ત્ર મારાં છે આમ કહીને આજની કાને, નાશ કરનારી વાત કહે છે. તે સ્તનોત્કટ કહેવાય છે.
दूसरे की वस्तु का अपहरण स्तेनवृष्टि अर्थात् चोरी है। चोरी वस्तु की ही नहीं विचारों की भी होती है। दूसरे के साहित्य को अपने नाम से प्रकाशित कर देना यदि साहित्यिक चोरी है तो दूसरे के विचारों को तोड़-मरोड़ कर रखने, उसके वचनों का गलत आशय निकालना भी एक प्रकार की चोरी ही है।
कुछ देहात्मवादी व्यक्ति दूसरों के सिद्धान्तों और गाथाओं को विकृत रूप में लेकर अपने सिद्धान्तों की पुष्टि करना चाहते हैं। यह सब भोली जनता को भुलावे में डालने के तरीके हैं। तुम्हारे मुनि भी तो ऐसा कह कर विचारकों के विचारों को गलत रूप में रखते हैं। यह भी एक प्रकार की चोरी ही है ।
जिन शास्त्रों से दूसरों के प्रति करुणा भाव समाप्त हो जाता है, हृदय से कोमलता के अंकुर मिट जाते हैं उन शास्त्रों को अपना कहना स्वेनोत्कट है। देहात्मबाद अपने मिथ्या सिद्धान्तों के प्रतिपादन के लिए करुणा शील महापुरुषों के वचनों का उपयोग करता है। सैतान भी अपना काम बनाने के लिए शास्त्रों की दुहाई देता है। साथ ही देहात्मबाद कोमलता के अंकुर को समाप्त कर देता है। क्योंकि आत्मा के अस्तित्व के सद्भाव में अहिंसा और दया का सद्भाव हैं।
टीका :- स्तेनोको नाम यो अन्यशास्त्रष्टान्तमाह्मस्वपक्षसाचनानिरतो ममैरादिति व्याहरन् करुणच्छेदम् क्षति ।
गतार्थः ।
प्रोफेसर शुविंग मिन्न मत रखते हैं तीसरा उत्कट पैसे व्याज से रखने वाला है। अपना दृष्टिबिन्दु दृष्टान्त के साथ भार पूर्वक प्रस्तुत करना उसे प्रिय लगता है। दूसरे के मूल ग्रन्थों में से कुछ लेता है उसके लिए गर्वोकि कर सम भाव का उच्छेद करता है ।
प्रश्नः - से किं तं देसुकले ? |
उत्तरः- देसुक्कले णामं जेणं अत्थिन एस इति सिद्धे जीवस्स अकसादिपहिं गाहेहिं देसुच्छेयं वदति, से तं देसुक्कले ।
अर्थ :- प्रश्नः - प्रमो1 देशोत्कट क्या है ?
उत्तर :-- देशोत्कट वह कहा जाता है जो आत्मा के अस्तित्व को मान कर भी आत्मा को अकर्ता आदि बताता है। वह आत्मा के एक देश का उच्छेद करता है, वह देशोत्कट है ।
गुजराती भाषान्तर:
प्रश्न:---भगवन् ! हेथोस्ट छ ?
ઉત્તર:-દેશોડ્કટ તેને કહે છે. જે આત્માના અસ્તિત્વને માનીને આત્માને અકર્તા માને છે તે આત્માના એક દેશનો નાશ કરે છે તે દેશોદ્ર છે.
कुछ दार्शनिक आत्मा का अस्तित्व तो स्वीकार करते हैं, किन्तु उसके स्वरूप के संबन्ध में मतभेद रखते हैं। आत्मा को मानते हुए भी सांख्य दर्शन उसे कर्ता नहीं मानता है । वह आत्मा को नहीं प्रकृति को कर्ता मानता है । यद्यपि जैनदर्शन भी शुद्ध निश्वय दृष्टि के अनुसार आत्मा को पुद्गलादि का कर्ता नहीं मानता है। फिर निश्चय दृष्टि भी स्वभाव परिणति का तो कर्ता मानती है। सांख्य दर्शन आत्मा के भोक्तृत्व रूप को तो स्वीकार करता है किन्तु उसके कर्तृत्व रूप को अस्वीकार करता है। यह देशोत्कट कहलाता I
१] अमूर्तश्वतन भोगी नित्यः सर्वगतोऽक्रियः । अकर्ता निर्गुणः सूक्ष्म आत्मा कपिलदर्शने ।
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