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________________ बीसवाँ अध्ययन १०१ जिस ज्ञान में आर्य है वही सम्यक् ज्ञान है, जिस दर्शन में आर्यत्व है वही सम्यक् दर्शन है और जिस आचरण में आर्यत्व है वही सम्यक् आचरण है। 'आर्य' शब्द के प्राकृत में दो रूप मिलते हैं। पहला 'अज' और दूसरा है 'आरिय' आगम में 'अज' शब्द का बहुतायत से प्रयोग हुआ है। साधु के लिए भी 'अज' शब्द का व्यवहार हुआ हैं । अजो समणे भगवं महावीरे बहुये समणे निग्गंथे इ निग्गंधीओ व आममंसेत्ता एवं वयासी ।-स्थानांग; उपासक दशांग अ. २ महावीर भ्रमण निर्प्रन्थों को आर्य शब्दों से संबोधित करते हैं। आचार्य के लिए भी 'अज' शब्द बहुतायत से प्रयुक्त हुआ है। L अम सुम्मे समोसटिए । -ह. भु. २ अ. १ । बाद के आचार्यों के लिए भी 'अज' शब्द काफी समय तक प्रयुक्त होता रहा है। अब संडिक, अज मद्दागिरी, अज वर आदि अनेक आचार्यों के नाम के आगे भी यही 'अज' शब्द जुड़ा हुआ मिलता है। वहीं आर्यत्व यहां अपेक्षित है। टीका :- किं रूपं तु तदार्यमिति भायं साधु ज्ञानादित्रयं तस्मादार्थ सेवस्य । गतार्थम् । एवं से सिद्धे बुद्धे णो इत्थं पुणरवि त्र्यं आगच्छति ति बेमि । गतार्थः । आरियाणज्यणं ऋषभाषितेषुआरियायण- अर्ह तर्षिप्रोक्तं एकोनविंशतितममध्ययनम् उत्कल वा द अतर्षि प्रोक्त वीसवाँ अध्ययन भारतीय दर्शन में कुछ दार्शनिक जडाद्वैतवारी है। जिनका विश्वास है कि विश्व में केवल जड तत्व ही काम कर रहा है। ये दर्शन कार प्रत्यक्ष वादी होते जीवन और जगत् का रहस्य खोजने चले । स्थूल आँखें कह उठीं कि जो कुछ सामने है वही सब कुछ है । स्थूल देह ही काम कर रहा है। इसके अतिरिक्त कहीं भी आत्म लक्ष्य अवभाषित नहीं हो रहा है। अतः वे देवात्मवादी ही रह गए हैं। देह के अतिरिक्त कोई आत्म-तत्व है ऐसा उनकी बुद्धि स्वीकार ही न कर सकी है। यह देहात्मबाद आत्म-तत्त्व का उच्छेद करता है । उसके विभिन्न रूप है । कोई अल्प रूप में तो कोई संपूर्ण रूप में आत्म तत्व का स्वीकार करता है। यही उत्कट बाद है । प्रस्तुत अध्याय देहात्म वादियों की कहानी कहता है । सिद्धि | पंच उकला पत्रश्वा तं जहा-१ दंडुकले २ रजुकले ३ तेयुकले ४ लुकले ५ सबुकले | अर्थ :- पांच प्रकार के उत्कल अर्थात् धर्म रहित चोर बतलाए गए हैं। दंड उत्कल, रज्जु उत्कल स्तेन उत्कल, देश उत्कल और सर्वं उत्कल । गुजराती भाषान्तर: પાંચ પ્રકારના ઉત્કલ એટલે ધર્મ વગરના ચોર કહેવામાં આવ્યા છે. દંડ ઉત્કલ, રજ્જુ ઉત્કલ, તૅન ઉલ દેશ ઉત્કલ, અને સર્વ ઉત્કલ. स्थानांग सूत्र में पांच उत्कलों का निरूपण आता है। पंथ उक्ला पण्णता से अड्डा दंडकले रजुले ० । ठा० सू० अ० ५ ० ३ । प्रोफेसर झुनिंग लिखते हैं कि यह संपूर्ण प्रकरण हेतुपूर्वक नहीं है । अतः असंगत लगता है। क्यों कि उसमें न तो ऋषि का नामोल्लेख है और न सुद्रालेख उद्देश्य ही बतलाया गया है। साथ ही जो भौतिक बाद यहां पर प्रतिपादित किए
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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