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आरियान अतर्षिप्रोक्त उन्नीसवाँ अध्ययन
आर्य कौन है ? | क्या जिसने आर्य जाति में जन्म लिया है वह आर्य है । यदि ऐसा है तो आर्यत्व केवल खून में ही रह जाएगा। आचार और विचार उससे शून्य रहेंगे ! वस्तुतः जिसके विचारों में आर्यता है, जिसके आचार संस्कारी हैं, वही व्यक्ति 'आर्य' कहने लायक है। यदि आर्यत्व को पैत्रिक मान लिया गया तो साधन का कोई मूल्य न रह जाएगा । आचार की पवित्रता विचारों की पवित्रता पर अवलम्बित है और विचारों की पवित्रता महापुरुषों के सानिध्य से सुरक्षित रहती है। एक कहावत है 'जैसा है संग जैसा रंग' ननुष्य जिसके साथ रहता है वैसा ही बन जाता है। एक पश्चिमी विचारक कहता है कि
Tell me with whom thou art found and I will tell thee where thou art
मुझे बताइए कि आप के संगी-साथी कौन हैं और में बता दूंगा कि आप कौन उसकी रक्षा के उपाय बताना ही इस अध्याय का उद्देश्य है ।
सव्वमिगं पुराऽऽरियमासि आरियायणेणं अरहता इसिणा बुझतं । यज्जेज अणारियं भावं, कम्मं शेव अणारिथं । अणारियाणि य मित्राणि आरियत्तमुचट्टिए ॥ १ ॥
अर्थ :- पहले यहां आर्यत्व ही था; इस प्रकार आरियायण अर्हतर्षि बोले । साधक अनार्य विचार और अनार्य आचार का परित्याग करे। इसके लिए अनार्य मित्रों का भी साथ छोड़ दे और आर्यत्व में प्रवेश करने के लिए तैयार हो जाए । गुजराती भाषान्तरः
જુના જમાનામાં અહીંયા આર્યત્વ જ હતું, આમ આરિયાયણ અદ્વૈતર્ષિ બોલ્યા. સાધક અનાર્યું વિચાર અને અનાર્ય આચારનો ત્યાગ કરે. આ માટે અનાર્ય મિત્રોનો પણ સાથ છોડી દ્યો અને આર્યત્વમાં પ્રવેશ કરવ 1 માટે તૈયારી કરો.
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महाकवि गेटे
हैं। आर्यत्व की परिभाषा और
भारत पहले भार्य भूमि थी। जिसके विचारों में आर्यत्व था, उसके आचार में आर्यत्व बोलता था। पर आज भारत से आर्यत्व विदा ले रहा है। भारतीय मानस में अनार्य विचार पनप रहे हैं। उसके कर्मों में अनार्यत्व की छाया है। आर्थिक और सामाजिक शान्ति के लिए मानव सब से पहले आर्य बने । अनार्य विचार और अनार्य कर्म का परित्याग करे । इसके लिए साधक अनार्य व्यक्तियों का साथ छोड़ दे। फिर चाहे वे उसके अभिन्न मित्र ही क्यों न हों। यदि साथी अनार्य है तो जीवन में अनार्य वृत्ति प्रवेश अवश्य करेगी। एक कॉलेजियम स्टूडेन्ट यदि मांसाहारी मित्र के साथ लबों में घूमता हैं तो निश्चित ही कुछ दिनों में मुर्गी के अंडों को वेजिटेबल के रूप में उसकी बुद्धि स्वीकार कर लेगी। अतः अनार्यत्व के परिहार के लिए साथी का आर्य होना आवश्यक
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आय की परिभाषा देते हुए अर्धमागधी कोश में शतावधानी रत्नचंद्रजी यह लिखते हैं किः "आरात् सर्वहेयधर्मेभ्यो यातः प्राप्तो गुणैरित्यर्थः " ।
सभी निन्दनीय और अहितकारी कार्यो को छोड कर व्यक्ति और समाज के लिए हितप्रद गुण प्राप्त करना आर्यल है । जिसके द्वारा सामाजिक शान्ति भंग न हो ये समस्त कार्य आर्यत्व की सीमा रेखा के अन्दर आ सकते हैं। गुजराती भाषान्तरः
जे जणा अणारिए णिचं कम्मं कुव्वंत अणारिया । अणारिहि य मित्तेहि सीदंति भव सागरे ॥ २ ॥
अर्थ :---जो अनार्थ मानव हैं, वे अनार्य मित्रों के साथ मिल कर हमेशा ही अनार्थ कर्म करते रहते हैं । वे अनार्य जन भव-सागर में दुःखों को प्राप्त करते हैं।
गुजराती भाषान्तर :
જે અનાર્ય માનવી છે તેઓ અનાર્ય મિત્રોને મળીને હંમેશા અનાર્ય કર્યાં જ કર્યાં કરે છે તેઓ અનાર્યે જન ભવસાગરમાં દુઃખોને પ્રાપ્ત કરે છે.