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इसि - भासिया
भावना ही मोक्ष और संसार का हेतु होती है। आत्मा जब इन्द्रियों पर शासन करता है तब इन्द्रियां मोक्ष-हेतुक बनती हैं और जब इन्द्रियां ही आत्मा पर शासन करती हैं तब वे भव-हेतुक होती हैं ।
दुर्वते इंदिप पंच, रागवोसपरंग मे ।
कुम्मो विवस अंगाई, सर वेहम्मि साहरे ॥ २ ॥
अर्थ :- राग और द्वेष चेतना में प्रवृत्त पांचों इन्द्रियां दुर्दान्त बनती है। अतः बाहरी आघात की आशंका होते ही जैसे कछुआ अपने अवयवों का संगोपन कर लेता है उसी प्रकार साधक आश्रम की ओर प्रवृत्त इन्द्रियों का संवरण करे 1 गुजराती भाषान्तर :
રાગ અને દ્વેષ ચેતનામાં પ્રવૃત્ત થયેલી પાંચ ઇન્દ્રિયો અજેય અને છે. માટે બહારના આઘાતની આશંકા થતાં જ જેવી રીતે કાચો પોતાના અવયવો સંકોચી લે છે તેવી જ રીતે સાધક આશ્રવ (ઉલ્લંધન ) તરફ પ્રવૃત્ત ઈન્દ્રિયોનું સંવરણ કરે.
अप्रशस्त पथ की ओर प्रवृत्त इन्द्रियों का साधक किस प्रकार संवरण करे इसका सुन्दर रूपक प्रस्तुत गाथा में है । कछुआ जब तक अपने आप को सुरक्षित मानता है तब तक वह चलता रहता है, किन्तु जब उसे खतरे का अनुभव हुआ वह अपने अवयवों को समेट लेता है। साधक भी ऐसा ही करे । इन्द्रियाँ स्वाध्याय आदि प्रशस्त पथ में जाएं तो उन्हें जाने दे | किन्तु जब वह अप्रशस्त पथ की ओर जाने लगे तो उन्हें अविलम्ब ही संवृत कर ले।
वही सरीरमादार जहा जोपण गुंजती ।
इंदियाणि य जोर य तहा जोगे वियाणसु ॥ ३ ॥
अर्थ :-- जैसे अमि आहार और शरीर को यथास्थान पर जोड़ती है। वैसे ही इन्द्रियां बाहरी पदार्थों को आत्मा से जोड़ती है और योग को सक्रिय बनाती हैं।
गुजराती भाषान्तर :
જેવી રીતે અગ્નિ, આહાર અને શરીરને પોતપોતાના સ્થાન પર જોડી દે છે, ઈંદ્રિયો બહારના પદાર્થોને આત્મા સાથે જોડે છે, તે જ પ્રમાણે ઈન્દ્રિયો જ યોગને સાંક્રય બનાવે છે.
अग्नि के द्वारा पक अन्न शरीर के लिए उपयोगी हो सकता है । अथवा उदरगत अभि खाए हुए भोजन का पाचन कर के शरीर के विभिन्न अवयवों को शक्ति प्रदान करती है। इसी प्रकार इन्द्रियां और योगत्रय अर्थात् मनोयोग, वचनयोग और काययोग पदार्थों को आत्मा तक पहुंचाते हैं । इन्द्रियाँ पदार्थ और आत्मा का योग करती है ।
परोक्ष ज्ञान युक्त आत्मा पदार्थों को इन्द्रियों के ही माध्यम से जानता है। अतः परोक्ष शान इन्द्रिय सापेक्ष होता है । शब्द-रूपादि-रूप में परिणत द्रव्यों को आत्मा तक पहुंचाने का काम इन्द्रियों का हैं ।
टीका :- वह्निः परिणाम - तेजः शरीरमाहारं ति आहारेण यथा युनक्ति योगेन कारणेन तथा योगान् विज्ञानीहीन्द्रियाणि तत् प्रयोगश्च युअत इति श्लोकस्योत्तरार्धस्य शंकनीयोऽर्थः ।
जैसे जठराम आहार को शरीर में परिणत करती है, क्योंकि खाद्य पदार्थ को शरीर के लिए उपयोगी बनाने वाली अमि है इसी प्रकार योगों को सक्रिय बनाने वाली इन्द्रियां हैं। उनके प्रयोगों को वह जोड़ती है। इस पर श्लोक के उत्तरार्ध का अर्थ टीकाकार की दृष्टि में संदेहास्पद है ।
पर्व से बुद्धे० । गतार्थः । सोरियायण - णामायणं ॥
इति सोरियायण अर्हता- भाषितं वडाध्ययनम् ।
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