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इसि-भासियाई प्रकार साधक को-शरीर को नहीं-उसके विष को याने वासना को मारना है । अनुचित वृत्ति को मारना है। सोमल विष है, किन्तु उसे मार दिया जाए, अर्थात् पका दिया जाए तो वही अमृत बन जाएगा। इसी प्रकार अशुभ वृति समाप्त हुई तो यहीं स्वर्ग है और यहीं मोक्ष है। म. महावीर की भाषा में कहा जाए तो:
भया नई चेयरणी अप्पा मे कूडसामली।
अप्पा कामदुहा घेणू अप्पा मे नंदणं वर्ण ।। -उत्तरा० अ० २० गा० ३६ मेरी आत्मा ही वैतरणी नदी और कूटशाल्मली वृक्ष (काली सेमल) दोनों ही है। किन्तु भूलो नहीं, कामदुधा धेनु भी मेरी ही आत्मा है। और देवों की रमणीय भूमि नन्दन-वन भी मैं ही हूं। बाहर कहाँ खोज रहे हो? । यदि खोजना है तो अपने आप में खोजो । वहीं सब कुछ है!।
एवं से सिद्धे युद्धे । गतार्थम् ।
मधुररायपि मज्झयण मधुराजर्पिभाषित पंचदशाध्ययनम्
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सोरियायण-अर्हतर्षि-भाषित
षोडश अध्ययन श्रेष्ठ कौन है ! जिसके पास वैभव है। विशाल अहालिकाओं में सौन्दर्य नाचता है । सौन्दर्य के पायल के झंकार से जिसका मन झंकृत होता रहता है। भारतीय संस्कृति भोग में नहीं, त्याग में विश्वास करती है। उसने भोगियों के नहीं, त्यापियों के सामने मस्तक झुकाया है।
जिसका मन और इन्द्रियों पर शासन है वही महान है। पदार्थों का चंचल सौन्दर्य जिसके मन को चलित नहीं मनाता है, वहीं पुरुषोत्तम है । इन्द्रियों का दमन और उसके साधन का प्रस्तुत अध्ययन में निरूपण है।
सिज । जस्स खलु भो विसयायारा ण य परिस्सपंति इंदिया वा दवेहिं से खलु उत्तम पुरिसे त्ति सोरियायणेण अरहता इसिणा बुहत ।
अर्थ:-जिसके इन्द्रियों का वेग द्रचित वस्तु की तरह विषयाचार की ओर नहीं दौडता है वही आत्मा श्रेष्ठ है। इस प्रकार सोरियायण अतिर्षि बोले। गुजराती भाषान्तर:
જેના ઈન્દ્રિયોનું ધ્યાન (આકર્ષણ) પ્રવાહી પદાર્થની જેમ વિષયોના ઉપભોગની તરફ દોડતું નથી તે જ આત્મા श्रेष्ठ थे. मे प्रमाणे सोरियाय अतर्षि गोट्या.
जो इन्द्रियों का गुलाम है वह दुनियां का गुलाम है। इन्द्रियों पर जय पाने वाला साधक विश्व-विजयी है। पानी का स्वभाव है दलकान की ओर बहना। ऐसे ही इन्द्रियों का स्वभाव है विलय की ओर दौडना । किन्तु जिसके पास ज्ञानाकुश है वह इन्द्रियों पर स्वामित्व पा सकता है।
टीका :--यस्य स्खलु भो इन्द्रियाणि विषयानारा न परिवन्ति द्रवैरिव स खलु भवष्युत्तमः पुरुषः । गतार्थः ।
तं कहमिति? मणुण्णेनु सहेसु सोय विसयपत्तेसु णो सज्जेजा णो रजेजा णो गिज्झेजा णो विणिवायमावजेजा। मणुण्णेसु सद्देसु सोत्तविपयपत्तेसु सन्जमाणे, रजमाणे, गिज्झमाणे सुमणो आसेवमाणे विप्पवहतो पायकम्मस्स आदाणाप भवति । तम्हा मगुण्णासु सद्देसु सोय-बिसय-पत्तेनु णो सज्जेजा, पो रजेजा णो गिझेजा णो सुमपो अण्णे अवि एवं रूबेसु, गंधेसु, रसेसु, फासेसु एवं विवरीएसु णो दूसेजा।