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इसि-मासियाई
अर्थ:-अपि चार लार की होती है-रण की आग, कर्म की आग, बीमारी की आग और बन की भाग । दुःख की जड संपूर्ण रूप से ही नष्ट करना चाहिए, क्योंकि ऊपर से काट डालने पर भी वृक्ष फिर से उग आता है। गुजराती भाषान्तरः
અગ્નિના ચાર પ્રકાર છેઃ બાણની આગ, કર્મની આગ, બિમારીની આગ અને વનની આગ, દુઃખની જડ સંપૂર્ણપણે નાશ કરવી જોઈએ, કારણકે ઉપરથી કાપી નાખવા છતાં વૃક્ષ ફરીથી ઉગી નીકળે છે.
चार प्रकार की आग है-ऋण की आग मी एक प्रकार की आग ही है, जो हिमालय में मी मनुष्य को जलाती रहती है। कभी ऋण दाता उसे वचनों की आग से भूनता है। घर में बालक भूख की आग में जलते हैं, दिन-रात मेहनत कर के कुछ कमाता है; वर्ष भर खून का पसीना कर के कमाया गया पैसा सेठ एक ही दिन में ले जाता है । अतः ऋण की आम दूर रह कर भी मनुष्य के तन और मन दोनों को जलाती है। कर्म की आग आत्मा के दिव्य गुणों को भस्म कर डालती है। वही कर्म की आग तो नरक की ज्वाला का हेतु बनती है। वेदना अर्थात् भीमारी की आग मी एक आग है तो वन की मी एक आग है।
दुःख की लता को जड मूल से उखाड़ फेंकना चाहिए । क्योंकि आधे काटे हए वृक्ष में से भी नई नई कोंपले निकल पाती हैं।
टीका:-बहिस्स ति बढ: ऋगकर्मणः भामकस्स ति रोगस्य व्रणस्य च निःशेषं वातिनां यथासंख्य निवारयितुर्दातुश्चिकित्सकस्य च श्रेय मानन्दो भवति गतमिति वसवादीनि तु कालेन प्रत्यागमिष्यन्ति यथा दुमश्रियोऽपि पुनरारोहति ।
अर्थ:-अमि, ऋण, कर्म, रोग और व्रण को संपूर्ण नष्ट करने वाले को आनन्द मिलता है और क्रमशः अग्नि बुझाने वाला, अगदाता और विक्रेत्सक को श्रेय मिलता है। यह ठीक है, किन्तु अग्नि आदि समय पा कर पुनः लौट सकते हैं।
भासच्छण्णो जहा बण्ही, गूढ कोहो जहा रिपू ।।
पाधकम्मं तहा लीणं, दुक्खसंताणसंकडं ॥ २४ ॥ अर्थ:-भस्माच्छादित अनि और निगूट कोधी शत्रु जैसे छिपा घात करता है, उसी प्रकार पाप कर्म में दुःख की परंपस और संकट छिपे रहते हैं। गुजराती भाषान्तरः
રાખોડીમાં ઢાંકેલો અગ્નિ અને ક્રોધી શત્રુ જેવી રીતે છૂપે હુમલો કરી શકે છે તે જ પ્રમાણે પાપકર્મમાં દુઃખની પરંપરા અને સંકટ છુપાયેલા રહે છે,
प्रत्यक्ष आग से भस्माच्छादित आग अधिक भयंकर होती है। यदि शत्रु के वैष में आता है तो उतना नुरा नहीं होता जितना कि मित्र के वेष में आया हुआ शत्रु । उसका आधात गहरा होता है, क्योंकि मित्र के वेष में आए हुए शत्रु को हम जल्दी से पहचान नहीं सकते । इसी प्रकार पाप जब कटु रूप में आता है तब वह शीघ्र ही पहचाना जा सकता है। किन्तु सुख के रूप में आया हुआ पाप मित्र के रूप में आया हुआ शत्रु है। और दुःख एक चतुर बहुरूपिया है, जो हमेशा सुख के ही रूप में आता है। जनता उसका खागत करती है, किन्तु पीछे से बह दुःखों और संकटों की परंपरा छोड जाता है। टीका:-यथा बलिभस्माच्छनो बा यथा रिपुहक्रोधो धा तथा लीने गूढ़ पापकर्म दुःखसंतानसंकटं भवति । गतार्थः ।
पत्तिधणस्स पहिस्स, उहामस्स विसस्स य ।
मिच्छत्ते यावि कम्मरल, दित्ता बुद्धी दुहावहा ॥ २५॥ अर्थः-अग्नि को जब प्रचुर इंधन प्राप्त हो जाता है विष जब उनाम हो जाता है और कर्म जब मिथ्यात्व में प्रवेश करता है तो तीनों प्रचंड हो जाते हैं। इस अभिवृद्धि का परिणाम आत्मा के लिए दुःख रूप ही होता है। गुजराती भाषान्तरः
અમને જ્યારે પ્રચર ઈધન (બળતણ ) પ્રાપ્ત થાય છે; વિષ જ્યારે સર્વત્ર (શરીરમાં) ફેલાઈ જાય છે; અને કર્મ જ્યારે મિથ્યાત્વમાં પ્રવેશ કરે છે ત્યારે ત્રણે ઘણું ભયંકર થઈ જાય છે. આવી રીતે તેઓની અભિવૃદ્ધિનું પરિણામ આત્મા માટે દુઃખરૂપ થઈ જાય છે.