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पंचदश अध्ययन
गुजराती भाषान्तर:
પૂર્વ ભવમાં કરેલા પાપને વશ થઈને દુર્બદ્ધિ આત્મા દુઃખને અનુભવ લે છે. ગાઢ પાપમાં આસક્તા રહેનાર કષ્ટ અને વિપત્તિના પ્રવાહમાં સ્વયે પોતાને નાંખી દે છે.
आत्मा स्त्र-वश हो कर पाप करता है। पाप-प्रवृत्ति के लिए उसे दूसरा कोई प्रेरित नहीं करता है। किन्तु उसकी अशुभ परिणति ही उसे उस ओर प्रेरित कर देती है। वह चाहे तो दुर्वासनाओं को रोक सकता है। किन्तु उसकी स्वार्थ बुद्धि उसे ऐसा करने से रोकती है। परिणामतः वह दुर्वासना के प्रवाह में वह जाता है और पाप-कर्म का बन्धन कर लेता है। किन्तु उसके प्रतिफल भोगने में वह स्वतंत्र नहीं है। वह चाहे या नहीं चाहे, किन्तु उसको फल भोगने के लिए तैयार रहना ही होगा।
पायं जे उपकुवंति, जीया साताणुगामिणो।
वङ्गती पायकं तेसि अणम्माहिस्स या अणं ॥ १५॥ अर्थ:-सुखेच्छु आत्माएँ सुख के लिए पाप करते है, किन्तु जैसे ऋण लेने वाले पर ऋण बढ़ता ही जाता है वैसे ही सुखार्थी आत्मा का पाप भी बढ़ता जाता है। गुजराती भाषान्तर! -
સુખ ચાહનારા આત્માઓ સુખ મેળવા માટે પાપ કરે છે. પણ જેવી રીતે કરજ લેવાવાળા પર દરરોજ દેવું વધતું જ જાય છે, તે જ પ્રમાણે સુખાર્થી આત્માનું પાપ પણ દરરોજ વધતું જાય છે.
आत्मा अनन्त युग से सुख के लिए परिश्रम करता है। उस स्वार्थ 'जन्य सुख की प्राप्ति के लिए जघन्य से जघन्य कृत्य भी करता है। अतः उसकी शप परम्परा सुरसा के मुँह की भांति बढ़ती ही जाती है। वह एक ऐसा ऋणी है जो ऋण लेता ही जाता है। अथवा लौटाता भी हो तो एक हजार लौयता है और दस हजार पुनः ले आता है। तो वह कर ऋणमुक हो सकता है।
अणुबद्धमपस्संता पच्चुप्पण्णगधेसका।
ते पच्छा दुषखमच्छति गलुच्छिन्ना मसा जहा ॥ १६ ॥ अर्थ:-जो केवल वर्तमान सुख को ही खोजते हैं किन्तु उस से अनुबद्ध फल को देखने से इनकार कर देते हैं, वे (आत्माएँ) बाद में उसी प्रकार से दुःख पाते हैं- जैसे कि गला विधी हुई मछली। गुजराती भाषान्तर:
જેઓ ફક્ત વર્તમાન મુખને જ શોધે છે પરંતુ તેથી અનુબદ્ધ (તેને સાથે જોડાયેલ) ફળને માટે લાંબો વિચાર કરતા નથી, તે આત્મા-ગળું વિંધાયેલી માછલી જેવી રીતે પાછળથી દુઃખી થાય છે–તેવી જ રીતે દુઃખી થાય છે. ____ कुछ आत्माएँ वर्तमान तक सीमित होती हैं, अतीत अनागत से उपेक्षित होते हैं । वर्तमान सुख पर उनकी दृष्टि होती है। किन्तु उस सुख के साथ बंधी हुई दुःख की परम्परा को वे नहीं देखते । आँख मूद लेने मात्र से ही कष्ट के काटे नष्ट नहीं हो आते हैं। मछली केवल आटे को देखती है किन्तु उसके पीछे छिपे हुए कांटे को नहीं देखती । इसीलिए तो वह भोली मछली अपना गला छिदवा लेती है।
आताफहाण कम्माणं, आता भुंजति जं फलं ।
सम्हा आतस्स अट्टाप, पावमादाय वजप ॥ १७ ॥ अर्थ:-आत्मा ही कर्मों का कर्ता है और आत्मा ही उसका भोक्ता है। अतः साधक आत्मा के अभ्युदय के लिए पाप को छोड़ दे। गुजराती भाषान्तरः
. આમાં જ કમીને કર્તા છે અને આમા જ તેનો ભોક્તા છે; માટે સાધકે આમાની આબાદી માટે પાપ કરવાનું જ છોડવું જોઈએ.