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इसि-भासियाई
प्राचीन काल में धीवर लोग मछली पकड़ने के लिए एक प्रकार का कोटा बनाते ये, और उस पर आटे की गोली लगा देते थे। जब वह कोटा पानी में डाला जाता तो आटे को खाने के लिए मछली आती थी, किन्तु ज्यों ही वह गोली को निगल जाना चाहती खो ही आटे में छिपा हुआ आटा उसके गले को विध देता। इसी प्रकार मोह युक्त आत्मा स्वजन परिजन के लिए अनीति और अत्याचार के द्वारा सम्पत्ति का संग्रह करता है। किन्तु भोला मानव उसी भूखी मछली की भांति है जो आटे को देखती है, कांटे को नहीं । वह व्यक्ति सम्मुख रहे हुए आनन्द को ही देखता है किन्तु उस क्षणिक आनन्द के पीछे आने वाली दुःख की परम्परा को नहीं देखता है।
पच्युप्पण्णरसे गिखो मोहमल्लपणोल्लितो।
दिस पावति उच्चंट चारिमझे व वारणा ॥ १२ ॥ अर्थ:-मोहमल्ल से प्रेरित आत्मा वर्तमान भोग के आनन्द में लुब्ध होता है और पानी में रहे हुए हाथी की भौति वह मोह-मोहित आत्मा दीप्त उत्कंठा अथवा उत्कृष्ट उतेजना को प्राप्त करता है। गुजराती भाषान्तरः
મોહરૂપી મત્વ (પહેલવાન ) થી પ્રેરિત આત્મા ભગના તાત્કાલિક આનંદમાં લુબ્ધ થાય છે. અને પાણીમાં રહેલા હાથીની માફક મેહમોહિત આત્મા દીન ઉત્કંઠા અથવા ઉત્કૃષ્ટ ઉત્તેજનાને પ્રાપ્ત કરે છે.
मोह-गृद्ध व्यक्ति केवल वर्तमान के सुख में आनन्द मानता है । भविष्य में होने वाले कट परिणामों की ओर से आंख मूंद लेता है। जिस प्रकार हाथी पानी में रह कर मद-मस्त हो जाता है, उसी प्रकार मोह के कीचह में फंस कर आत्मा अधिक मोहान्ध हो जाता है।
परोवघाततल्लिच्छो दप्प-मोह-मलुद्धरो।
सीहो जरो दुपाणे वा गुण-दोसं न विदती ॥ १३॥ सई----दर्पसहगल लरकीही गतरे के घात में आनन्दित होता है। जैसे युद्ध सिंह उन्मस हो कर विवेक खो बैठता है और निर्जल प्राणियों की हिंसा करता है। इसी प्रकार मोहोन्मन मानर गुण-दोष का विवेक भूल
जाता है।
गुजराती भाषान्तरः
પપી ધમથી ઉદ્ધત થયેલી વ્યક્તિ બીજના નુકસાનમાં આનંદ પામે છે. જેવી રીતે વૃદ્ધ સિંહ ઉન્મત્ત બનીને વિવેક ખોઈ બેસે છે અને નિર્બળ પ્રાણીઓને નાશ કરે છે, તેવી જ રીતે મોહોન્મત્ત માનવી ગુણોને વિવેક ભૂલી જાય છે.
मोह विवेक की ज्योति को बुझा देता है, मोह-मदिरा है, जो पीता है उसे पागल बना देता है। उसका मन मइंकार के मद से मत्त हो उठता है। अहंकारी ब्यक्ति अपने में बहुत मड़ी शक्ति मानता है और दूसरे को सदैव निर्यल मानता है। जब कभी उसके अहं पर ठेस लगती है वह भूखे मेदिए की तरह उस पर टूट पड़ता है।
जैसे विक्षिम वृद्ध व्याघ्र दुष्प्राण दुर्बल प्राणियों का संहार करता है इसी प्रकार मोह-मन मानव विवेक भूल कर दूसरों के व्याघात के लिए तत्पर हो जाता है।
टीका:-परोपघातपरो दर्पमोहमलैरुदुरो उद्धृतो गुणदोषान् न तिति । यथा वृद्धः सिंह उद्याने गतः प्राणिनो इम्ति बिवेकमवत्या यदि घा यथा सिंह एकविंशाध्ययनकथितः परं जिघांसते । गतमर्थम् ।
विशेष इक्कीसवें अध्ययन में भी सिंह का रूपक आया दै कि किसी प्राणी के शिकार में वह किस प्रकार अपने प्राण खो देता है।
सषसो पावं पुरोक्रिया दुक्खं वेदेति दुम्मती ।
आसत्तकंठपावो(सो) वा मुकधारो दुहडिओ ॥ १४ ॥ अर्थ :-पूर्व कृत पाप के वशीभूत हो कर दुर्बुद्धि आरमा दुःख का अनुभव करते हैं। आकंठ पाप में आसक्त रहने वाला कष्टों और विपदाओं की धारा में अपने आप को छोड़ देता है।
-- -.- १ ।१ देखिये अध्ययन २१ गाथा ६ ।
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