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________________ इसि-भासियाई सभावे सति कंवस्स जहा वल्लीय रोहणं । बीयातो अंकुरो चेष दुक्खं बल्लीय अंकुरा ॥ ५ ॥ अर्थ:-जैसे कंद के सद्भाव में ही लता पैदा होती है और बीज से अंकुर फूट पड़ते हैं, उसी प्रकार पाप रूप लता से दुःख अंकुरित होते हैं। गुजराती भाषान्तर: જેવી રીતે કંદ હોય તો જ વેલ પેદા થાય છે અને બીજથી અંકુર ફૂટે છે તેવી જ રીતે પાપ રૂપ વેલથી દુઃખ અંકુરિત થાય છે. जहां कंद होगा वहां लता अवश्य होगी और बीज को मिट्टी और पानी का सहयोग मिला तो उसमें से अंकुर फूट पड़ेंगे। इसी प्रकार जहाँ पाप की उपस्थिति है वहां दुःख की लता अवश्य ही पैदा होगी। पायघाते हृतं दुक्खं, पुप्फघाप जहा फलं। विद्धाप, मुद्धसूई कतो तालस्स संभवे ? ॥६॥ अर्थ:-जैसे फल को कुचल देने पर फल स्वतः नष्ट हो जाता है, इसी प्रकार पाप को नष्ट कर देने से दुःख भी समान हो जाता है। सूई के द्वारा ताड के ऊर्च भाग को दिध दिया जाए फिर ताट वृक्ष का विनाश निश्चित ही है। गुजराती भाषान्तर:रेपीशत बने उस मारा : द ते ५: 1.1. तi: पोतानीभग જ નષ્ટ થાય છે. સોઈથી તાડના ઝાડની ઉપલા ભાગને વાંધી દેવાથી તાડનો નાશ થયા વગર રહે નહી. टीका:-पापघाते हवं दुक्खं यथा फलं हतं पुष्पधाते कृते । कुतस्सालफलस्य संभवो बिवायां सस्यां मुर्धसूच्या इते तालपादपस्य शिखरे तालफलानि दुमस्थाने पच्यन्ते इति प्रसिद्धं । पाप के नष्ट कर देने पर दुःख उसी प्रकार से नष्ट हो जाता है जिस प्रकार कि फूल को नष्ट कर देने पर फल । यदि ताड के शिखर भाग को विंध दिया जाय तो ताट का फल कभी नहीं पैदा हो सकता, क्योंकि ताड फल वृक्षान पर ही पकते है जो कि प्रसिद्ध है। मूलसेके फलुप्पत्ती, मूलघाते हतं फलं । फलस्थी सिंचप मूलं, फलघाती न सिंचति ॥ ७ ॥ अर्थ:-जड़ के सिंचन करने पर फल प्राप्त होता है और मूल पर प्रहार करने से फल स्वतः नष्ट हो जाता है। कलार्थी फल को सींचता है फल-घातक मूल का सिंचन नहीं करता है। विशेष देखिए अध्ययन २ गाथा। गुजराती भाषान्तर :-- મૂળનું સિંચન કરવાથી ફળની પ્રાપ્તિ થાય છે અને મૂળ પર પ્રહાર કરવાથી ફળ સ્વતઃ નાશ પામે છે. ફલને ચાહનાર મળને સીંચે છે, ફળઘાતક મૂળનું સિંચન કરતો નથી. વધારે! માટે જુઓ અધયયન ૨ ગાથા . दुखितो दुक्ख घाताय, दुपवावेत्ता सरीरिणो। पडियारेण दुक्खस्स दुषखमण्णं णिबंधई ।। ८॥ अर्थ:-दुःख की अनुभूति करते हुए दुःखाभिभूत देहधारी दुःख का विघात चाहते हैं। किन्तु एक दुःख के प्रतिकार करने पर दूसरे दुःख का निबन्धन कर लेते हैं। गुजराती भाषान्तर: દુઃખના અનુભવ કરવાવાળા દુઃખથી પીડિત પ્રાણી દુઃખના નાશ માટે ઈચ્છા રાખે છે, અને એક દુઃખને નાશ કરતાં બીજા દુઃખોને નોતરે છે. दुःखवेदन शील आत्मा दुःख-मुक्ति के लिए प्रति क्षण प्रयत्नशील रहता है। किन्तु होता यह है कि एक दुःख से मुक्त होने के लिए किया गया उपचार नए दुःस का द्वार बन जाता है। आज प्रायः यही होता है। एक बीमारी को दबाने के लिए डॉक्टर इन्जेक्शन देता है वह पूर्ण रूप से दबती भी नहीं है कि दूसरी बीमारी के अंकुर फूट निकलते हैं।
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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