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________________ इसि - भासियाई शांत दुःखों से ही अभिभूत व्यक्ति के कर्मों की उदीरणा होती है। अशान्त दुःखी दुःख की उदीरणा नहीं करता। क्योंकि कर्म की उदीरणा से हीरा का कोई नहीं उठता, ऐसा मधुराज अतर्षि बोले । ८० गुजराती भाषान्तर :-- પ્રશ: - દુઃખી વ્યક્તિ શાન્ત આધારહિત દુઃખની ઉદ્દીરા કમૅ છે કે અશાન્ત દુઃખની ? જવાબ: – દુઃખી વ્યક્તિ શાન્ત ખાધારહિત દુઃખની જ ઉદીરણા કરે છે. કારણકે ઉદીરિત ઉદીરણ્ણા નિરર્થક છે. શત દુઃખોથી જ અભિભૂત વ્યક્તિના કર્મીની ઉદીરા થાય છે. અશાન્ત દુઃખી દુઃખની ઉદીરણા નથી કરતો. કારણ કે કર્મની ઉદીરણાથી જ તે દુ:ખી થયો છે, તેથી ફરીથી ઉદીરશાના કોઈ પ્રશ્ન જ ઉપસ્થિત થતો નથી, એમ મધુરાજ અર્જુને ઓલ્યા. कर्म प्रदेश आत्मा के साथ बद्ध होते हैं। कुछ काल तक निवल पते रहते हैं। उन्हें 'शान्त कर्म' कहा जाता है। शान्त कर्म ही शान्त दुःख है । उसी के संबन्ध में यहाँ प्रश्नोत्तर किए गए हैं। प्रश्न :- जिनके कर्म शान्त और निश्चल अवस्था में पडे हुए हैं ऐसा आत्मा मी भविष्य की अपेक्षा से दुःखी है, वह शान्त दुःख की उवीरणा करता है या अशान्त दुःख की ? । अर्थात् निश्चल कर्म की उदीरणा होती है या चलित कर्म की है। उत्तर :- शान्त दुःख की ही उरीरणा हो सकती है। क्यों कि जो कर्म चलित हो चुके हैं, उदीरणा में आ चुके हैं, उनकी उदीरणा ही क्या होगी ? | शात दुःख और अशात् दुःख की उदीरणा का प्रश्न पहले चर्चा गया है उसका ही उपसंहार करते हुए मधुराज अतर्षि कहते हैं - ज्ञाता दुःख से अभिभूत आत्मा के कर्मों की उदीरणा होती है। अशान्त दुःखी दुःख की उदीरणा नहीं करता टीका :- पुनः पृच्छा था- किं शान्तं बाधारहितं दुःखं दुःखी उदीरयत्युत्तरशान्तम् ? इति । शान्तमेवेत्युत्तरमुदीरितस्योदीरणाः, निरर्थकत्वात् । गतमर्थम् । दुक्खेण खलु भो अपहीणेण जीप आगच्छंति हत्थच्छेषणाएं पादच्छेयणाई एवं णमज्झयणं गमपणं यध्वं जाथ सासतं नित्र्वाणमम्भुषगता चिट्ठेति णवरं तुक्खाभिलाषो । अर्थ :- दुःख से अविमुक्त आत्मा संसार में पुनः आता है और उनका हस्त-दन होता है, पाद छेदन होता है । शेष नवम अध्ययनवत् समझना चाहिए, यावत् शाश्वत निर्वाण प्राप्त करते हैं विशेष वह जीव की सकर्मक दशा को दुःख का मूल बताया गया है। मां दुःख युक्त आत्मा का निरूपण है। गुजराती भाषान्तरः દુઃખથી મુક્ત ન થયેલો આત્મા સંસારમાં ફરીથી આવે છે અને તેના હાથ કપાય છે, પગ છેદાય છે. નવમા અધ્યયન મુજબ સમજવું જોઈ એ શાશ્વત ( હંમેશનું ) મૃત્યુ પ્રાપ્ત કરે છે. વધુ ત્યાં જીવની સકર્મક ( કર્મસાથેની ) દશાને દુઃખનું મૂળ કહેવાયું છે. અહીં દુઃખથી ભરેલ આત્માનું નિરૂપણ છે. पात्रमूलमणियाणं संसारे सध्वदेहिणं । पावाणि दुक्खाणि पात्रमूलं च जम्मणं ॥ १ ॥ अर्थ :- संसार के समस्त देहधारियों का अनिर्वाण भव-भ्रमण का मूल पाप है और समस्त दुःखों की सृष्टि भी पापमूलक ही है, जन्म एवं च शब्द से प्राय मृत्यु पापमूल है। गुजराती भाषान्तर: સંસારના દરેક દેહધારીઓનું ભવભ્રમણનું મૂળ પાય છે અને દરેક કુંઃખની સૃષ્ટિ પણ પાપજ છે, જન્મ એવા શબ્દથી ગ્રહણ કરાયેલું મૃત્યુ પાપનું મૂળ છે. मिलाइए अध्ययन २ गाथा ७। केवल मोह शब्द विशेष है। संसारे दुक्खमूलं तु पार्व कस्मं पुरेकडं । पावकम्मणिरोधाय सम्मं भिक्खू परिव्यय ॥ २ ॥
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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