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पंचदश अध्ययन
संसारस्थ आत्माएँ दुःखी है तो प्रदन उठता है कि दुःस को निमन्त्रण कौन देता है। साता दुःख से दुःखी धारमा दुःख को निमन्त्रण देता है अथवा असाता दुःख से अभिभूत आत्मा दुःख की उदीरणा करती है। दुःख दो रूप से आता हैएक सुख के द्वारा दूसरा दुःख के द्वारा। आत्मा जब सुख में पागल बनता है, तब दुःख को निमन्त्रण देता है। अति सुख दुःख में परिवर्तित हो जाता है। राषण और दुर्योधन सुख से हो पागल थे । उनका सुख ही दुःख लेकर आया । दूसरी ओर दुःख कमी असाता के द्वारा भी आता है । असाता के उदय में जब व्यक्ति धैर्य को खो बैठता है और निमित पर आकोश करने लगता है तब वह उस दु:ख के साथ दूसरे दुःख को निमन्त्रण देता है। ___ यहाँ ही प्रदन है कि सुख में पागल बनी व्यक्ति दुःख को निमन्त्रण देता है या दुःस में पागल बने व्यक्ति दुःख को निमन्त्रण देते हैं?1
पहला प्रश्न एक वचन में है, फिर वही प्रदन बहुवचन में दुहराया गया है। एक बचन के लिए इनकार कर दिया गया है, क्योंकि एक ही व्यक्ति संसार में साता या असाता दुःख से दुःली नहीं है। बहुवचन में पूछे गए प्रश्न के समाधान में कहा गया है कि साता दुःख से अभिभूत व्यक्ति दुःख की उदीरणा करता है। पर ग्रह विषय अस्पष्ट है, क्योंकि क्या असाता दुःख से अभिभूत व्यक्ति दुःख की उदीरणा नहीं करता ?
टीका:-शातं सुखं तस्मादुत्पनं दुःखं शात् दुःखं किं तेनाभिभूता उताशातू दुःखेन भिभूतो दुःखी दुःख उदीरयनीति पृच्छा नशा दुःखेनाशात् दुखेनेत्युत्तरं । उदीरणाहेतोः निःसारस्वादिस्यर्थः संभाज्यते । अपरा पृच्छा यथाकि दुःखी शात् दुःखेनामिभूतस्योताशात् दुखेनाभिभूतस्य परस्प दुखिनो दुःखमुदीरयतीति साताभिभूत इत्युत्तरं दुःखिनोऽभिमवपूर्वमुखी भावात् । पृच्छा च व्याकरण अति प्राचीन टिप्पणी ।
शात अर्थात् मुम्स. उससे उत्पन्न द्रोने नाला नुःख शात दुःख है।
१ प्रश्न:-शात दुःख से अभिभूत आत्मा दुःख की उदीरणा करता है अथवा अशात् दुःख से अभिभूत आत्मा दुःख की उचीरणा करता है ।।
उत्तर:-शात दुःख से अभिभूत व्यक्ति दुःख की उदीरणा नहीं करता। क्योंकि उदीरणा का हेतु निर्बल है। इस प्रकार अर्थ की संभावना की जाती है।
२ प्रश्न:-दुःखी व्यक्ति दूसरे किसी शात दुःख से अभिभूत दुःखी व्यक्ति के दुःख की उदीरणा करता है अथवा अशात दुःख से दुःखी की है।
उत्तर:-शाताभिभूत व्यक्ति के दुःख की उदीरणा करती है। क्योंकि वर्तमान में वे दुःख का अनुभव कर रहे हैं, किन्तु पहले वे सूखी थे। पृच्छा और व्याकरण प्रश्न और उत्तर यह प्राचीन टिप्पणी है।
प्रोफेसर शुत्रिंग इस विषय में अपना मित्र मत रखते हैं। सब ठुःख शात दुःख से यह अर्थ समझा जा सकता है कि विषयप्रियता से जन्म लेने वाला दुःख यही लिया गया है। यहां प्रश्नवाचक कृदन्त नहीं है। यहां प्रश्न और उत्तर दिए गए हैं।
१. जो शारीरिक या मानसिक नाराजगी प्रगट करता है यह मानसिक प्रियता या अप्रियता का परिणाम है। (वह ज्यादा उपयोगी नहीं है।)
२. जिसे इस प्रकार का प्रत्याघात लगता है, वह पूरी तरह से दुःख से आबूत है।
३. इस दुःख को हम कर्म का असर कह सकते हैं। गद्य का मूल लेख नवम अध्ययन की ही भांति कर्म फिलोसोफी के अनुरूप है।
ओ कर्म अशान्त अस्पन्दन शील हैं, वे ही उदय में आते हैं । अतः उन्हें उदीरित करने की आवश्यकता नहीं है।
संत तुक्षी दुक्खं उदीरेइ । असंतं दुक्खी दुक्खं उदीरेति । संत दुक्खी दुक्ख उदीरे । साता. दुक्खेण अभिभूतस्य उदीरेति णो असंतं दुक्खी दुक्खं उदीरेछ । मधुरायणेण अरहता इसिणा बुहयं ।
अर्थः-प्रश्न:--दुःखी व्यक्ति शान्त बाधा रहित दुःख की उदीरणा करता है या असान्त दुःख की ? उत्तर:-दुःखी व्यक्ति शान्त दुःख की ही उदीरणा करता है। क्योंकि उदी रित की उकीरणा निरर्थक है।