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________________ इसि-भासियाई गुजराती भाषान्तर: જે સાધક વાસનાયુક્ત છતાં પ્રત્રજિત થયો હોય અને કામનાને મનમાં રાખીને તપશ્ચરણ કરતો હોય, તે અકામ મૃત્યુ પ્રાપ્ત કરીને નરકમાં જાય છે. બીજી બાજુ સકામ તપ કરીને અર્થત પોતાની ઈચ્છાથીજ તપ કરીને અને સકામ મૃત્યુ એટલે કે અનિત્તમ મૃત્યુ પ્રાપ્ત કરીને આત્મા સિદ્ધપદવી પ્રાપ્ત કરે છે, अकाम की ही भौति सकाम शब्द भी दो अर्थों में व्यवहृत्त है। पहला अर्थ है जिस साधक के अन्तर्मन में वासना की चिनगारी नहीं बुझी है और उसी वासना और उसके प्रसाधनों को सहस गुणित रूप में पाने के लिए जो साधना करता है, किन्तु वह वासना की चिनगारी समय पाकर ज्वाला का रूप ले सकती है और बही ज्वाला नरक की ज्वाला के रूप में परिणत भी हो सकती है। मुकाम तप का दूसरा अर्थ है - स्वेच्छा से किया गया तप, जिसमें बाहरी दवाव न हो। परिस्थिति या पराधीनता के कारण भूला रहना तप है अवश्य, किन्तु उसकी गणना अकाम तप में है। किन्तु जिसके पीछे विवेक की मशाल जल रही है, साधक की अन्तरात्मा तप की प्रेरणा दे रही है, ऐसा खेच्छित आरम साधना का हेतु बन सकता है और नद, तप सिंहस्थिति की पानि का साक्षात् कारण भी बनता है। सकाम और अकाम साधना दोनों मोक्ष हेतुक हो सकती हैं, यदि उसके पीछे सवुद्देश्य काम कर रहा है । अन्यथा दोनों ही नरक के भी हेतु है । अतः क्रिया का बाहरी रूप अन्तःशुद्धि का मानदंड नहीं हो सकता । अपितु उसके पीछे रही हुई अन्तर्भावना क्रिया की शुद्धता और अशुद्धता का मानदंड होता है। पर्व से युद्धे । मतार्थः। याहुकणामज्झयणं समतं इति बाहुक-अर्हतर्षि-प्रोक्तं चतुर्दशं अध्ययनम् S a . ..। -rapemador मधुराज आईतर्षि प्रोक्त सात नामक पंचदश अध्ययन कोई भी आत्मा दुःख नहीं चाहता, फिर भी दुःख का निमन्त्रण वही खयं देता है। दुःख बहुरूपिया है। यह विभिन्न रूपों में आता है। कभी वह शान्ति के रूप में आता है। ऊपर से सुन का रूप दिखाई देने वाला कार्य कमी कभी अपने अन्तर में अशान्ति की आग लेकर आता है। भौतिक सुख इसी प्रकार का सुख है। उसके हर कदम के साथ दुःख बंधा हुआ है। दुःख की उदीरणा कौन करता है ? इसी प्रश्न का समाधान प्रस्तुत अध्याय करता है। ___सिद्धिः । सातादुक्खेण अभिभूते दुपली दुक्खं उदीरेति, असातादुक्खेण अभिभूप. दुषखी दुपलं उदीरेति ? सातादुक्खेण अभिभूए जावणो असातादुक्षेण अभिभूए दुक्खी दुक्खं उदीरेति । सातादुक्षेण अभिभूयस्स दुक्खिणो दुक्ख उदीरेति, असातातुक्षेण अभिभूयस्स दुपिखणो दुक्ख उदीरेति सातादुक्खेण अभिभूतस्स दुक्खिणो दुक्खं उदीरेति । पुच्छाय य यागरण च । अर्थ:-साता दुःख से अभिभूत आरमा दुःख की उदीरणा करता है ? या असाता दुःख से अभिभूत दुःखी आत्मा दुःख की उबीरणा करता है ? साता और असाता दुःख से अभिभूत आरमा दुःख की उचीरणा नहीं करता । साता दुःख से अभिभूत दुःखी आत्माएँ दुःख की उदीरणा करते हैं, असाता दुःख से अभिभूत दुःखी आत्माएँ दुःख की उदीरणा करते हैं। पृच्छा और इसका व्याकरण अर्थात् प्रश्न और उसके उत्तर यहां दिए गये हैं। गुजराती भाषान्तर: શાન્તિના દુઃખથી અભિભૂત આત્મા દુઃખની ઉદીરણ કરે છે કે અશાનિના દુઃખથી દુઃખ આત્મા દુઃખની ઉદીરણા કરે છે ? શાંતિ અને અશાંતિના દુઃખથી કાખી આત્મા દુઃખની ઉદીરણા કરે છે એશાંતિના દુઃખથી અમિત દુઃખી આત્મા દુઃખની ઉદીરણા કરે છે પ્રશ્ન તથા તેના ઉત્તર અહીં આપવામાં આવેલ છે.
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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