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________________ ७६ इसि-भासियाई क्रिया शुद्ध है, किंतु यदि उसके पीछे विचारधारा अशुश है तो सारी किया अशुद्ध होगी। पक्षियों के लिए दाना डालना करुणा प्रेरित कार्य माना जाता है। किंतु एक शिकारी भी दाने बिखेरता है, किंतु उसके पीछे उसकी भावना अशुभ है। अतः शुभ क्रिया भी पुण्य बंधन न होकर पाप बंधक हो जाती है। अप्पाणिया खलु भो अप्पाण समकसिया भवति बचिंधे गरवती अप्पणिया खलु मोय अप्पाणं समुक्कासय समुकासय भवति बद्धचिंध सेट्टी। अर्थ :-अपने द्वारा राजा अपने आप को कसने पर मद्धचिन्ह नहीं कहलाता । किन्तु एक सेट अपने द्वारा अपने को कसने पर पद्धचिन्ह कहा जाता है। गुजराती भाषान्तर : પોતાનાથી પોતાને કરવાથી રાજ બદ્ધચિહું નહીં કહેવડાવે. પરંતુ એક સેઠ પોતાનાથી પોતાને કરવાથી मयि खावे छे. एक व्यक्ति एक कार्य करता है उसका परिणाम ठीक आता है। तो दूसरा व्यक्ति भी वही काम करता है तो उसका परिणाम विपरीत आता है। एक सम्राट यदि कटा हुआ वस्त्र पहनता है तो भी वह फटेहाल नहीं कहलाता। किन्तु उसके इस कार्य से उसके लिए सादगी का आदर किया जाता है। जब कि एक सामान्य गृहस्थ फटा हुआ वस्त्र पहने तो वह फटेहाल कहा जाएगा, दूसरी ओर यदि एक लक्षाधिपति अधिक बोलता है तो उसकी एक वाक् उदारता समझी जाती है।। एक गरीब यदि कोई योग्य बात भी मोले तो वाचाल कहा जाता है।। क्रिया एक होने पर भी व्यक्ति की स्थितिभेद से क्रिया के परिणाम में भी भेद हो जाता है। टीका:-युक्तमयुकयोग न प्रमाणम्-भारमना खलु भो बाम्मान समुत्कृष्योसमय न भवति बदविहो राजलक्षणसंयुको नरपतिरास्मानं समुल्कष्टनावश्यं तस्य सर्वपूजितस्वात् तद्वद विश्वमानितस्य श्रेछिनः स्वचेशविशिष्टस्य । यदि कोई योग्य वस्तु भी किसी अयोग्य के साथ है तो वह प्राश नहीं है। राज-चिन्ह से युक्त राजा के लिए अपने श्राप को उत्कृष्ट करने की भी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह तो पूज्य है ही। इसी प्रकार विश्वमान्य सेठ भी स्ववेश में विशिष्ट है, किन्तु उसे अपने अनप को उत्कर्षशील बनाने की आवश्यकता है। एवं चेव अणुयोये जाणह खलु भो समणा माहणा गामे अदु वा रणे अदुवा गामेणोऽवि रणे अभिणिस्सिए इभ लोग परलोग पणिस्सप दुहओ वि लोके अपट्टिते अकामए याहुए मतेति अकामप चरप तचं अकामए कालगए णरफ पत्ते अकामए पवाए अकामते चरते तवं अकामते कालगते सिद्धिपत्ते अकामप। अर्थ:-यह अनुयोग इस प्रकार समझना चाहिए - ग्राम में बन में या दोनों के मध्य में रहते हुए श्रमण और ब्राह्मण इस लोक के लिए अमिनिःसृत है. और परलोक में प्रनिःसूत होते हैं। दोनों लोकों में अप्रतिष्ठित है, क्योंकि दोनों ही अशा. श्वत हैं। अकामक-कामना रहित बाहुक ने अकाम तप किया । अकाम मृत्यु से मर कर पूर्व कर्म के वशीभूत हो कर नरक में गया। बाद जब मनुष्य लोक में जन्म लेकर निष्काम दीक्षा ग्रहण करता है, निष्काम तप करता है, सभी ओर निष्काम साधन करके निष्काम सिद्धि प्राप्त करता है। गुजराती भाषान्तर: આ અનુયોગ આવી રીતે સમજવો જોઈએગામડામાં અથવા વનમાં અથવા અજેના વચ્ચે રહેતા સાધુ અને બ્રાહ્મણ આ લોકમાટે નિકળે છે, અને પરલોકમાં પ્રતિષ્ઠિત થાય છે, પણ તે બન્ને લોકમાં અપ્રતિષ્ઠિત થાય છે કેમકે भन्ने मशाश्वत छ. અકામ કામનારહિત બાહુક અકામ તપ કર્યું અને અકામ મૃત્યુથી મરીને તે પૂર્વે કરેલા કુકમને વશ થઈને નરકમાં ગયો. પછી જ્યારે મનુષ્યલોકમાં જન્મ લઈને નિષ્કામ દીક્ષા ગ્રહણ કરે છે, નિષ્કામ તપ કરે છે. અધી ખાજાએ નિષ્કામ સાધના કરીને નિષ્કામ સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરે છે.
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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