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________________ चतुर्दश अध्ययन ३. तीसरा एक व्यक्ति है वह कुछ इसलिए देता है कि समाज मत विषमता दूर हो । एक ओर सम्पत्ति के ढेर लगे हुए हैं तो दूसरी ओर खके है । एक ओर भवनों की पंक्तियां हैं, तो दूसरी ओर सिर ढकने के लिए झोपडी तक नसीब नहीं होती है। यह विषमता समाज के अखस्थता की प्रतीक है। अपनी सम्पत्ति का हिस्सा देकर वह व्यक्ति समाज की इन विषमताओं को दूर करना चाहता है।। '४. चौथा व्यक्ति इसलिए देता है कि उसकी धारणा यह है कि सम्पत्ति मेरी थी ही कब है। जब दुनिया को पहली आँखों देखा था तब कुछ भी नहीं था और जब दुनियों से विदा लेंगे तब भी कुल मेरे साध नहीं जाएगा। यहां मेरा कुछ भी नहीं है। फिर तेरा तुझको देने में क्या लगता है मुझे ? | पहले दो लोमी हैं - एक कीर्ति का, दूसरा स्वर्ग का, तीसरा भी सम्पत्ति पर अपना अधिकार नहीं छोड़ता है, जब कि चौथा सम्पत्ति पर अपना अधिकार भी नहीं मानता है । प्रस्तुत गाघा में दो वृस्तियों का वर्णन है । एक देता है तो दूसरा अपना अधिकार भी दे देता है। प्रोफेसर शुटिंग प्रस्तुत अभिप्राय से संमत हैं। वे लिखते हैं कि एक देता है, क्योंकि उसके पास कुछ है । दूसरा देता है, क्यों कि वह उस पर अपनी मालकियत नहीं रखता है। यदि वह किसी वस्तु पर अपनी मालकियत रखे तो मुझे वह वस्तु कभी नहीं देगा, किन्तु वह उस वस्तु पर अधिकार नहीं रखता, इसलिए मुझे दे देता है। टीका:-यकारणभिक्षादिमार्गितस्य किंचिदस्ति तेन मम ददाति । यत् कारणं नास्यास्ति किंचित् तेनापि मम ददाति । स्वधनस्थानंगीकारात्। यदि वस्त्र स्पद् यदि स्वधनमनीलयति ततो मम न दयात् । नास्त्यस्येति नांगीकरोति तसाम्मम ददातीस्येवमनयोः श्लोकयोरथैः सम्यगवगत इत्याशास। उसके पास कुछ है, इसीलिए वह मिक्षा के समय मुझे कुछ देता है। कोई कारण नहीं है फिर भी यदि वह मुझे देता है, क्योंकि वह अपनी संपत्ति पर अपना अधिकार ही नहीं समझता है। शेष पूर्ववत् है । विशेष में टीकाकार बोलते है कि दोनों लोकों का अर्थ हमने ठीक ठीक समक्ष लिया है ऐसी आशा करते है। मैत्रेयभयाली नाम अज्मयणं इति मैत्रेयभयालीपोतं प्रयोदशाध्ययनम् बाटुक-अहंतर्षि प्रोक चतुर्दश अध्ययन साधना में निष्ठा का महत्व है, क्रिया का नहीं। किया शुभ है, पर उसके पीछे अशुभ निष्टा काम कर रही है तो किय अपवित्र हो जाएगी। एक वैद्य भी किसी एहन का हाथ पकडता है और एक गुंडा भी कभी बुरे विचारों से प्रेरित होकर किसी स्त्री का हाथ पकड़ लेता है। क्रिया में साम्य है, किन्तु भाष में भेद है। इसीलिए दोनों के परिणाम में भी मेद है धर्म क्रिया में बसता है या भाव में ! कभी वह क्रिया में रहता है तो कभी भाव में रहता है, किंत सही अर्थों में धर्म का निवास-भूमि विवेक है। क्रिया, भावना और विवेक तीनों का इस अध्ययन में निरूपण किया गया है। जुचं अजुर्स जोगं ण पमाणमिति बाहुकेण अरहता इसिणा बुइतं । अर्थ :--युरू बात भी यदि अयुफ विचार के साथ है, तो प्रमाण खरूप नहीं है। इस प्रकार बाहुक अईतर्षि ने कहा है। गुजराती भाषान्तर: સાચી વાત પણ એ અસત્ય વિચારથી મેળવેલી હોય તે પ્રમાણુસ્વચ્છ નહીં કહેવાય. આમ બાહુક અહર્ષિએ अछ.
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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