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________________ इसि-भासियाई निर्जरा विपाकोदय द्वारा उदीरणा के द्वारा शान्तोदीरणा अशान्तोदीरणा प्रोफेसर शुटिंग प्रस्तुत गाथा की व्याख्या मिन्न रूप में करते हैं। उनके विचार से माथा के पूर्वार्द्ध में कर्म के स्वरूप का वर्णन है। जब कि उपर भाग में भौतिक सम्पत्ति की चर्चा की गई है। क्यों कि दोनों एक दूसरे से संबन्धित है। कर्म का क्षय होने से आत्मा का सांसारिक रूप समाप्त हो जाता है। अर्थात् आत्मा की अशुभ पर्यायें लुप्त हो जाती हैं। अथवा विद्यमान कर्म अल्प रूप में नष्ट हो जाता है। किन्तु उदय उदीरणा रहित शान्त कर्म नष्ट नहीं होता। . लोप विद्यमान का ही होता है। अविद्यमान का लोप नहीं हो सकता । आत्मा के साथ कर्म है तभी उसका लोप हो सकता है । सत् वस्तु में से मन का लोप हो सकता है, सम्पूर्ण का नहीं। आत्मा की कुछ विभाव जन्म पायें नए हो सकती । हैं और ऐसे तो प्रति क्षण पर्याय परिवर्तन होता ही है। किन्तु पर्याय के नाश के साथ साथ द्रव्य नष्ट नहीं होता। 'अस्थि में तेण देतिः 'नथि में तेण देह मे। जह से होज, ण मे देजा; णस्थि से, तेण देह मे ॥६॥ अर्थ:-हां में यदि वह कुछ देता है तो ना में भी कुछ दे ही जाता है। यदि उसके पास कुछ है और वह नहीं दे रहा है तो कम से कम इन्कार तो देता है । अथवा एक व्यक्ति देता है, क्योंकि उसके पास कुछ है। दूसरा देता है किन्तु, उस वस्तु पर बह अपना अधिकार नहीं मानता है। यदि अधिकार रखे तो बह दे ही नहीं सकता और अधिकार नहीं मानता है। इसी लिए तो वह देता है। गुजराती भाषान्तर: હકારમાં જે તે કાંઈ આપે છે તો નકારમાં પણ કાંઈક આપતો જાય છે, અને કદાચ તેની પાસે ય અને તે આપતો નથી તે ઓછામાં ઓછું નકાર તે આપશે જ; એક વ્યક્તિ કાંઈક આપે છે કારણ કે તેની પાસે કંઈક છે, બીજે આપે છે પરંતુ તે વસ્તુ પર પોતાનો અધિકાર છે એમ માનતો નથી. અને જો અધિકાર રાખે તો તે દઈ શકતો નથી. અધિકાર નથી એમ સૂમજે છે એટલે તો તે આપે છે. हमने किसी से कुछ याचना की, वह यदि युन्छ देता है तो उसके पीछे कुछ अस्तित्व है । उस व्यक्ति के पास भी वस्तु का सद्भाव है और मेरे शुभोदय का योग है, अतः वह देता है। यदि वस्तु उसके पास मौजूद है. फिर भी वह इन्कार करता है, तो भी कोई बुरी बात नहीं होगी । हा में वह कुछ देता है तो ना में भी कुछ दे ही जाता है। कम से कम नहीं तो देता ही है और अपने अनुदार स्वभाव का परिचय देता है, साथ ही हमें आत्मनिरीक्षण का भी एक अवसर देता है। . १. दान के अन्दर चार वृत्तियां काम करती है-एक व्यक्ति देता है कुसौ के लिए। हजार दे कर मदले में दस हजार मान लेना चाहता है। पर यह दान नहीं, एक प्रकार का सौदा है। इसमें दाता ऊंचा है और लेने वाला नीचा । दाता स्वतंत्र है यह चाहे तो हजारों दे सकता है और न चाहे तो एक नया पैसा भी नहीं है। यह शिलालेखों का दान है। पर विज्ञापन की यह वृत्ति दान की पवित्रता को समाप्त करती है । लेबनान का प्रसिद्ध विचारक खलील जिब्रान कहता है: There are those who give a little of much which they have and they give it for recognition and their hidden desire makes their gifts wholesome, जो व्यक्ति अपनी विशाल सम्पत्ति में से कुछ भाग देता है वह 'मी इसलिए कि उसकी ख्याति हो । उसकी यह छिपी हुई कामना उसके दान को अशिव बना देती है। , २. दूसरा देता है स्वर्ग में सीट रिजर्व कराने के लिए। उसकी धारणा यह रहती है की जो कुछ यहां पर दिया जाएगा वह सहस्र गुणित होकर वर्ग में मिलेगा। .
SR No.090170
Book TitleIsibhasiyam Suttaim
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherSuDharm Gyanmandir Mumbai
Publication Year
Total Pages334
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size10 MB
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