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________________ उत्पत्तिके कथनसे, ब्राह्मणादि ग्रन्थोंमें विनियोग देखनेसे, अग्नि श्रादिके वर्णन करने वाले मन्त्रोंके अर्थासे, श्रुत प्रादिमें जो देवांके लक्षण आदि किये हैं उनके झामसे. प्रत्यक्ष दीखने वाले ही अग्नि श्रादि भौतिक देव ही सर्चत्र यज्ञामें गृहीत हैं. यह निश्चित मत है यानिकोंका । देवता शब्दसे अग्नि आदि शब्दोंसे उम देवाधिदेव ईश्वरका याज्ञिक मनमें नहीं है । तथा च---अधिदेवत व्याख्यानमें भी अनि श्रादि द्रव्यका ही झान अभिष्ट है अतः अधिदैवतपक्षमें भी अग्नि आदि शन्दों द्वारा ईश्ररका प्रहरा व्यर्थ ही है।" इस प्रकार आपने अधियाज्ञिक और अधिदेवतपसमें ईश्वरका अभाव सिद्ध किया है । शेष रह गया अध्यात्मवाद उसका वर्णन हम यथा स्थान करेंगे। तथा च आगे आपने देवोंक चार मंद बताये हैं। (१) मुख्य--अनि वायु (इन्द्र) व सूर्य. ये तीन मुख्य देव हैं । (6) अमुख्य.-मुख्य देवोंके सहकारी, प्रथिवी, जल, चन्द्रमा. श्रादि अनेक, अमुल्यदेव हैं। (३) पारभाषिक, इध्म, अक्ष, ग्रावा, आदि पारिभाषिक देवता हैं। (१) गोरण--ऋत्विक , यजमान. विद्वान आदि गौण देवता हैं। अर्थान--ये वास्तविक देवता नहीं हैं अपितु यज्ञ श्रादिस देवताओंकी स्तुति आदि करते है इसलिये उपचारसे इनको भी देवता कह दिया गया है।" जैन परिभाषामें इसका सार्थक नाम असदभूत व्यवहारनय है। तथा च ब्राह्मण अन्धों में स्पष्ट लिखा है कि
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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