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________________ ५ ९५ ! इसके बाद पत्र सत्यत्रतजी ने यह लिख दिया है कि "इनका आश्रम होने ईश्वरका भी बोध होता ही है जो यह उनका ईश्वरविषयक मोह ही जान पड़ता है। देवोंका अनेकत्व वर्तमान समय सुप्रसिद्ध वैदिक विद्वान श्रीमान पं० सत्यव्रत सामाश्रमीजी ने लिखा है कि- " इत्थं हि नाम निर्वचनतः स्थाननिर्देशतः कर्मनिरूपणतः उत्पत्ति वर्णनतः ब्राह्मणविनियोगतः तद्विहितमन्त्रार्थतः, देवलक्षणोदाहरण श्रुतितः, प्रत्यक्ष दृष्ट भौतिका देवास्पादग्ने राशित फलोपपत्तेश्च निर्णीतमेतत्-अयमेव पार्थिवो भौति सर्वत्र यज्ञेषु देव इति गृह्यते नान्यकश्चन" तथा च"देवशब्देन देवताभिधानाग्न्यादि शब्देव न तस्य देव देवस्य ग्रहणं याज्ञिक संगतम् । अधिदैवत व्याख्याने चान्यादि द्रव्यादि विज्ञानमेवाभिष्टमित्यग्नादिपदानामीश्वर वाचित्व व्यर्थ एव ।" पृ० १८२ तथा च वेदेषु चतुर्विधा देवा श्रूयन्त इत्येव फलितम् । तत्र अग्नि, वायु, सूर्यावैते त्रयोमुख्या देवाः । इष्माक्षग्रावादयः परिभाषिका देवाः पृथिवी जल चन्द्रमःप्रभृतयो वहब एव तन्मुख्यदेव सहचरादय इत्य मुख्या देवाः । "ऋत्विग्यजमान विद्वांसस्तु गौणा इति सिद्धान्तः ।" अर्थात् नामों के निर्वचनसे स्थान निर्देशसे, कर्मविभागसे, :
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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