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________________ अर्थात-श्रात्मादि विषयक ज्ञानका नाम अध्यात्म ज्ञान है । इसके विपरीत सांसारिक प्रवृत्तिको अज्ञान समझना चाहिये। तथा व अ०७ | में आये हुए "अध्यात्म" शब्दका अर्थ भी चायने "प्रत्यगात्म विषयक वस्तु तद् विदुः।" अर्थात्--अन्तरात्मविषय ही किया है। अतः स्पष्ट है कि गीतामें निज अात्म ज्ञानका नाम अध्यात्म विद्या व अध्यात्म ज्ञान है। उपनिषद् और अध्यात्म उपनिषद कारों ने इसको और भी स्पष्ट किया है । यथा-- अथाऽध्यात्म य एवायं मुख्यः प्राणः ॥छाशश।। णिच्चमणयदो दुचेदणा जस्स अथाध्यात्ममिदमेव मृत' यदन्यत्प्राणाच्च ।। ४ ।। अथामृत प्राणाश्च । ५॥ वृ० २।३॥ अर्थात--स्थूल और सुक्ष्म ( भाव पारण और द्रव्य प्रारण) प्राणी को अध्यात्म कहते हैं । इसी प्रकार के अन्य प्रमाण दिये जा सकते हैं । अभिप्राय यह है कि अन्तरात्मा के ज्ञान को अध्यात्म विद्या अथवा इसी का नाम परा विद्या भी है। परा विद्या द्वे विधे वेदितव्ये इति हस्म यद् ब्रह्म विदो बदन्ति
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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