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श्री० पं० सात वलेकरजीका मत
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वेद मन्त्रों का अर्थ आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक, ज्ञान क्षेत्र से भिन्न २ होता है । श्रध्यात्मिक क्षेत्र वह है जो आत्मा से लेकर स्थूल देह तक फैला है। "शरीर का अंगरस व्यक्तिगत होने से आध्यात्मिक पदार्थ है। इसका अधि भौतिक अर्थात् सामाजिक किंवा राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रतिनिधि "राष्ट्रीय जोवन” उत्पन्न करने वाला संघ होना स्वाभाविक है । तथा आधिदैविक क्षेत्र में इसी का रूप अमि अथवा आग में देखा जा सकता है ।" विद्या पृ० १४८ ॥
आपके मन से भी तीनों प्रकार के अर्थों में वर्तमान ईश्वर के लिये स्थान नहीं है ।
अध्यात्मवाद और गीता
अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते । श्र० ८ ३
अर्थात्- कभी भी नष्ट न होने वाला तत्व ब्रह्म है, और प्रत्येक वस्तु निजभावको स्वभाव कहते हैं, उसी स्वभावका नाम अध्यात्म है ।
अभिप्राय यह है कि अविनाशी ब्रह्म के स्वाभाविक ज्ञानको अध्यात्म कहते हैं ।
ब्रह्म, परमात्मा शुद्धात्मा, आदि एकार्थवाची शब्द हैं। अतः श्रात्मा शुद्ध स्वरूपका ज्ञान जिससे हो वह अध्यात्मविद्या हैं।. यही विद्या सब विद्याओं में श्रेष्ठ हैं।
अथवायू भी कह सकते हैं कि इसी ज्ञानका नाम विवाह श्रन्य