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अध्यात्मवाद
निरुक्त कार यास्काचार्य ने तीन प्रकार के मन्त्र बताये हैं । (१) परोक्ष कृत. ( २ ) प्रत्यक्ष कृत, (३) आध्यात्मिक | इनको आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक भी कह सकते हैं। यहां आध्यात्मिक प्रकरण का विचार करते हैं । श्री यास्काचार्य ने आध्यात्मिक के लिये लिखा है कि
अथाध्यात्मिक्य उत्तम पुरुष योगा अहम् इति च एतेन सर्व नाम्ना || नि० ७ १ १
अर्थात जनों में देवया के किये
की क्रिया कथा अहम अवास्. वयम् ये सर्व नाम पद हों वे श्रध्यात्मिक मन्त्र होते हैं
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अध्यात्म मन्त्रों का उदाहरण दिया है किऋभुवं वसुनः पूर्व्यस्पति रहं धनानि
संजयामि
शाश्वतः ।। ऋ०
इस मन्त्र का इन्द्र ही ऋषि और इन्द्र ही देवता है । श्री सायणाचार्य ने लिखा है कि एक बैकुण्ठानाम की राक्षसी थी उसने तप किया उस तप के प्रभाव से उसके इन्द्र' नाम का पुत्र उत्पन्न या उस इन्द्र की यह आत्म स्तुति ( प्रशंसा ) है । इसी प्रकार के अन्य उदाहरण भी दिये जा सकते हैं। आगे निरुक्तकार लिखते हैं कि
"परोक्ष कृताः प्रत्यक्ष कृताश्च मन्त्रा भूयिष्ठा अल्पश आध्यात्मिकाः || "
अर्थात्-परोक्ष कृत और प्रत्यक्ष कृत मन्त्र बहुत अधिक है. परन्तु आध्यात्मिक मन्त्र तो अत्यन्त अल्पम हैं ।