________________
( cow)
को मनुष्यों से ऐसा वैर था कि वह उनको धर्मात्मा होते देख नहीं सकता था ? क्या पौराणिक इन्द्रपुरी के इन्द्र के समान ईश्वरको उन लोगों से ईर्षा होती है जो धर्म पथ पर चलकर इन्द्रासन प्रण करना चाहते हैं " वस्तुतः स वाहिहि है ? क्या पाप भी दुःख के समान शैतान की कारीगरी है ! फिर ईश्वर उस शैतानको बनाया क्यों जिसने ईश्वर की समस्त कल्याण कारिता पर पानी फेर दिया ? या शैतान भी ईश्वर के समान शक्ति संपन्न है जिसके आगे ईश्वर महाशयको कुछ चलती चलाती नहीं ?
दुःख ही प्राणियों की पूर्णता का साधन है। अर्थात् इसका परिणाम अच्छा होता है । इस परिणाम से ही इसकी उपयोगिता स्पष्ट होती है । यह उपयोगिता उस समय भी सिद्ध होती यदि पूर्णता का अन्त आनन्द न होता । मैं समझता हूं कि पूर्णता स्वयं उच्चकोटीका साध्य (प्रयोजन ) है । और जो दुःख इस प्रयोजन की सिद्धि करता है वह कभी बुरा नहीं हो सकता। इस आपके लिये चिन्ता करना व्यर्थ हैं। मेरी समझ में नहीं आता कि प्राणिवर्ग के जीवन का आदर्श वह सुअर हो जिसको भली भांति खिलाया पिलाया जाता हो, जिसे कुछ काम न करना पड़ता हो, और वध करनेके लिये न बनाया गया हो । प्राणि वर्गकी शक्तियों के विकाश तथा उनकी प्रकृति की उन्नति के लिये जितने दुःख की आवश्यकता थी उतना ही दिया गया है, जब हम कहते हैं कि प्राणियों का मुख्य उद्देश्य सुख की प्राप्ति है तो हम ईश्वर की सृष्टि रचना प्रयोजनकी अवहेलना करते हैं। यदि दुःख केवल पूर्णता काही साधन होता और सुख का साधन न होता तो भी यह ईश्वर की परम दया सूचक होता परन्तु इससे तो और भी अधिक दयाका परिचय मिलता है कि दुःख न केवल पूर्णता का ही साधन है, किन्तु सुखका भी । जो दुःख प्रयत्न के लिये प्रेरणा करता है