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________________ Fww ( ८०६ } और पीड़ाका स्थान है ? बड़े से बड़े आस्तिक तक यही कहते हैं कि संसार असार है, संसार दुःखमय है और ईश्वर का बनाया हुआ है, तो दुःख भी ईश्वरने ही बनाया होगा। फिर उसको कल्याणकारी कैसे कह सकते हैं ? संसारमें सुख है कहाँ ? कोई पुत्रके शोक में शेरहा है, कोई विधवा पतिके वियोग में चिल्ला रही है कोई पुत्र अनाथ होकर सिसकता फिरता है। यदि संसारके साक्षात नरक होने की साक्षी देखनी हो तो प्रातः काल ही अस्प तालोंकी सैर कर आया करो | कैसी कैसी भयानक बीमारियां मनुष्य के शरीर में उत्पन्न हो सकती और हुआ करती हैं। फिर कहीं रोग है, कहीं है. कहीं पर है. कहीं मित्र बियोग है इस पर भी आस्तिक कहते हैं कि ईश्वर कल्याणकारी हैं तो यह दुःख किसने उत्पन्न कर दिया था । दुःखकी उत्पत्ति किसी और ने की और सुखकी किसी और ने कथा सचमुच श्री सृष्टि श्रकल्याणकारी शैतान बनाता है और आधी कल्याणकारी ईश्वर ? क्या ईश्वर इतना निर्बल है कि शैतान ईश्वरकी इच्छा के बिना भी दुःख का प्रचार और प्रहार कर ही जाता है और ईश्वर की कुछ बनाये नहीं बनती। क्या जिस प्रकार दुर्बल राजा के राज्य में विद्रोही छापा मारे बिना नहीं रहते इसी प्रकार ईश्वर की प्रजा में शैतान की दाल गल ही जाया करती है । दूसरा प्रश्न यह है कि पाप इतना अधिक क्यों है ? क्या आस्तिक लोग स्वयं इस बातकी साक्षी नहीं देते कि संसार में Enter कम और अधर्मी अधिक है ? समचे कम और झूठे अधिक हैं । ईमानदार कम और बेईमान अधिक हैं ? आस्तिक लोग कहते हैं कि धर्म पर चलना और तलवार की धार पर चलना बराबर है. ऐसा क्यों है ? दयालु परमेश्वरने धर्म पथको फूलांका मार्ग क्यों नहीं बनाया कि सभी धर्मात्मा हो सकते ? क्या ईश्वर
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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