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________________ ì (उन यह स्वयं सिद्ध हो जाता है कि ईश्वर ही इन सब पापोंकी जड़ है । क्योंकि अनेक पापियोंके दिल में वह पापके लिये उत्साह और आनन्द उत्पन्न करता है. जैसे मुसलमानोंके दिल में कुरवानीके लिए तथा हिन्दुओं का कत्लेआम करनेके लिये तथा हिन्दुओं के दिलों में मुसलमानों को मारने के लिये । एवं जितने भी आदमी दंगों मारे गये हैं वे भी उत्साह और आनन्दसे मारे गये हैं। अनेक जंगली जातियां हैं, जिनमें व्यभिचार आदिको बुरा नहीं माना जाता अतः वे लोग उन पापको निशंक होकर करते हैं। चकरोते के पास ही पहाड़ी जातिमें बड़े भाईकी स्त्री ही अन्य सय भाइयों की स्त्री होती है। वे लोग न तो इसको पाप ही समझते हैं और न इस कार्य के लिये उनके हृदय में भय, शंका व खजादि ही उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार मांसाहारको धर्म मानने वालोंकी अवस्था है । अतः यह कहना कि पाप करने समय ईश्वर भय शंका व लब्जा आदि उत्पन्न कर देता है बिल्कुल निराधार है। उस जब पुण्य या पाप. और सदाचार की कोई व्याख्या ही आप नहीं कर सकते तो सदाचार ही सृष्टिका उद्देश्य किस आधार पर सिद्ध किया जा सकता है। यदि उपरोक्त प्रश्न न भी उठायें तो भी यह प्रश्न होता है कि जब सृष्टि रचनेका उद्देश्य सदाचार ही है. तो आज तक ईश्वरको इस उद्देश्य की पूर्ति में सफलता क्यों नहीं मिली। आदि अनेक शंकायें हैं जिनका समाधान करना असम्भव है । बा० सम्पूर्णानन्द जी शिक्षा मन्त्री यू० पीठ ने इन प्रश्नों पर प्रकाश डाला है, उसको इसने 'कर्मफल और ईश्वर' प्रकरण में लिखा है. पाठक यहां देख सकते हैं। दुःख ' इस बात कौन विरोध कर सकता है कि संसार दुःख
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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