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________________ (coo) चावी देने वालेकी उपस्थिति बिना भी उसमें क्रिया होती रहती है। सारांश यह है कि आपने इस लेख में शब्दाडंबर के सिवा एक भी युक्ति नहीं दी हैं । यदि निमित्त कारणको भी कार्य में व्यापक मान लिया जाय ( जो कि असंभव है ) तो निमिश्र कारण में और उपदान कारण में भेद ही क्या रहेगा । दार्शनिकों का यह निश्चित सिद्धान्त है कि- समवाय सम्बन्ध ( नित्य सम्बन्ध ) व्याप्य व्यापक सम्बन्ध समवायी कारण के साथ ही कार्य का होता है, जैसा कि हम प्रथम सिद्ध कर चुके हैं। तथा च ईश्वर को व्यापक मानने पर जीव और प्रकृति की सत्ता ही नहीं रह सकेगी। इस बातको आर्य समाज के अनुपम वैदिक विद्वान् पं० सातवलेकरजी ने ही 'ईश्वरका साक्षात् कार' पुस्तके प्रथम भाग में स्वीकार किया है। जिसको हमने इसी प्रन्धके पू० ३३६ पर उद्धृत किया है। पाठक वहीं देखनेका कष्ट करें। भय, शंका, लज्जा, दयालु आगे आपने ईश्वरको दयालु सिद्ध करने के लिये कुछ प्रश्न लिख कर उनके उत्तराभास देनेका प्रयत्न किया है । आप लिखते हैं कि "ईश्वर कल्याणकारी है । कल्याकारी का ही दूसरा नाम भला, सत् अथवा दयालु या न्यायकारी है । यह सब गुण भलाई से ही सम्बन्ध रखते हैं । वस्तुतः भाव एक ही है । अवस्थाओंके भेदसे शब्द भिन्न भिन्न हो गये हैं। इनकी व्याख्या आगे की जावेगी । सृष्टि के नियमों से भलाई का इतना प्रवल प्रमाण मिलता है कि बहुतसे विचारशील पुरुष इसीको ईश्वर के अस्तित्वका प्रमाण मानते हैं। ऋषि दयानन्दने सत्यार्थप्रकाशमें लिखा है:
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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