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________________ ( २००१ ) भय, शंका, लज्जा, " जब श्रात्मा मन इन्द्रियोंको किसी विषय में लगाना या चोरी आदि बुरी वा परोपकार आदि अच्छी बात के करनेका जिस क्षण में आरम्भ करता है उस समय जीव की इच्छा ज्ञानादि उसी इति विषय पर झुक जाता है। उसी क्षण में आत्मा के भीतर से बुरे काम करने में भय शङ्का और लज्जा तथा अच्छे कामों के करने मैं अभय, निःशङ्कता और आनन्दोत्सव उठना है वह जीवात्माकी ओरसे नहीं किन्तु परमात्मा की ओरसे है और जब जीवात्मा शुद्ध होकर परमात्माका विचार करने में तत्पर रहता है उसको उसी समय दोनों प्रत्यक्ष होते हैं सत्यार्थप्रकाश. ( सप्तम समुल्लास ) 1 यहां ईश्वर सिद्धि का प्रकरण था अतः ज्ञात होता है कि स्वामी दयानन्द ईश्वर के अस्तित्वका एक प्रमाण यह भी समझते थे कि मनुष्य के अन्तःकरण में उचित और अनुचित में भेद करने की एक शक्ति है जो ईश्वर प्रदत्त है। अंगरेजीमें इसीको कांन्स (conscience) के नाम से पुकारते हैं। "कुल ग्रन्थकाराने सदाचार सम्बन्धी नियमको जो मनुष्य के अन्तःकरण (conscience ) द्वारा ज्ञात हो सकता है ईश्वर अस्तित्व का सबसे बड़ा प्रमाण माना है। उसकी दृष्टिमें अन्य प्रमाणोंकी आवश्यकता ही नहीं रहनी | जिस काएट ( Kant ) मे अपनी तर्क बुद्धिसे यह सिद्ध करनेका प्रयत्न किया था कि जितना मनुष्य अपनी तर्क शक्ति का ईश्वर विषयमें प्रयोग करता जाय उतना ही वह भूल भुलइयों में फंसता जायगा. उसी कास्टको यह भी मानना पड़ा कि व्यवहारिक बुद्धि और अन्तःकरण द्वारा की ऐसी साक्षी मिलती है कि सन्देहवादके लिये कोई स्थान नहीं रहता । सर विलियम हैमिल्टन ने भी यही माना है कि ईश्वर
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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