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इसीका नाम उदासीन कारण है। हमारा भी सवासे यही मत था कि ईश्वर जगतका प्रेरक कारण नहीं है अपितु वह उदासीन कारण है। स्वादयान और
हैं | पानीपत के लिखित शास्त्रार्थ में भी हमने उदासीन कारण की ही पुष्टि की थी। अब प्रश्न यह है कि परमाणुओं के स्वभाव से जगत नहीं बन सकेगा। इस प्रश्न में सब से बड़ी भूल यह हैं कि इस प्रश्नकर्ताकी बुद्धि में यह पहले से ही निश्चय है कि एक समय था जब यह संसार सर्वथा नहीं था । परन्तु उसको स्मरण रखना चाहिये कि ऐसा कोई समय नहीं था जब कि यह सम्पूर्ण लोक परमाणु रूप हो ।
अतः जब तक यह सिद्ध न हो जाये कि एक समय ऐसा था जब कि यह जगत परमाणुमय था उस समय तक इन प्रश्नोंका और इन युक्तियोंका कुछ भी मूल्य नहीं है । परन्तु यह प्रश्न sarai मानने से अवश्य उपस्थित होता है। प्रथम तो यही प्रश्न है कि ईश्वर सर्व व्यापक है अतः यह क्रिया नहीं कर सकता है । यस जो स्वयं निष्क्रिय है वह दूसरे को क्रिया दे भी नहीं सकता | चुम्बक पत्थर भी सक्रिय हैं यह बात वर्तमान युग के वैज्ञानिकोंने सिद्ध कर दी है। अतः यह सिद्ध है कि ईश्वर न क्रिया कर सकता है और न क्रिया दे ही सकता है। यदि यह मान भी लिया जाये कि ईश्वर गति करता है व गति देता है तो भी संसार नहीं बन सकेगा। क्योंकि ईश्वर सर्व व्यापक होने से क्रिया सब तरफ से होगी । ऐसी अवस्था में परमाणु गति हीन हो जायगा । जिस प्रकार लोहे के चारों तरफ चुम्बक रखने से लोहा क्रिया हीन हो जाता है। यदि कहो कि ईश्वर अन्तः क्रिया देता है क्योंकि यह परमाणु आदि में व्यापक है। तो भी ठीक नहीं क्योंकि ईश्वर परमाणु आदिके अन्दर व्यापक है प्रथम तो यही