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________________ J ( ७१० } (१) सांख्य मतानुसार प्रकृति का रजो गुण ही क्रिया कारक है । (२) जैन दर्शन द्रव्य मात्र को परिणमनशील मानता है । स्वामी दर्शनानन्द ने स्वभाववादियों के खण्डन में यह युक्ति दी है कि "यदि परमाणुओं में मिलने का स्वभाव है तो वह कभी अलग न होंगे, सदा मिले रहेंगे, यदि उनमें अलग अलग रहने का स्वभाव है तो कभी मिलेंगे नहीं। इस प्रकार कोई वस्तु न बन सकेगी। यदि उनमें से कुछ का स्वभाव मिलने का है और कुछ का अलग रहनेका तो जिन परमाणुओं का आधिक्य होगा उन्हीं के अनुकूल कार्य होगा अर्थात् यदि मिलने के का प्राबल्य है तो वह सृष्टि को कभी बिगड़ने न देंगे। यदि अलग अलग रहने वाले परमाणुओं का प्राबल्य होगा तो यह सृष्टि को कभी बनने न देंगे। यदि दोनों बराबर होंगे तो भी सृष्टि न वन सकेगी क्योंकि दोनों ओरसे बराबर खींचातानी होगी और किसी पक्षको दूसरे पर विजय प्राप्त करनी कठिन होगी । वस्तुतः सृष्टि की उत्पत्ति स्थिति और प्रलय तीनों अलग २ तथा सब मिलकर यही सिद्ध करती है कि इनका कारण एक चेतन शक्ति हैं। " समीक्षा - स्वा० दर्शनानन्दजी न तो ईश्वर में इच्छा मानते थे और न क्रिया । वास्तवमें वे ईश्वरको विज्ञान भिक्षु आदिकी तरह उदासीन कारण मानते थे। जैसे कि सृष्टि विज्ञान में मा० आत्मरामजी ने भी लिखा है कि "जिस प्रकार चुम्बकको सत्ता मात्र से लोहे में गति आ जाती है उसी प्रकार ईश्वरकी सत्ता मात्र से विश्व में गति फैल रही है।" इसी प्रकार दर्शनानन्दजी मानते थे, चुम्बक की तरह ईश्वर निष्क्रिय है परन्तु उसकी सत्ता मात्र से परमाणुओं में गति होती है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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