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________________ ( wae ) इसी प्रकार सांख्यका सिद्धान्त है कि परिणाम प्रकृति का स्वाभाविक गुण हैं वह प्रतय अवस्था में भी प्रकृतिमें रहता है । सांख्य तत्व कौमुदी में लिखा है कि 'प्रशिक्षण परिणामी दिवाना ते चितिशक्त ेः। अर्थात् आत्मा को छोड़ कर शेष सब भाव प्रतिक्षण परिरामनशील हैं अर्थात् प्रलय अवस्था में भी प्रकृति में प्रतिक्षण परामन होता रहता है | तथा योग दर्शनके भाष्य में व्यासजी लिखते हैं कि 'प्रकृतिर्हि परिणमनशीला क्षणमपि अपरिणम्य नावतिष्ठते' अर्थात् --- परिणमन प्रकृतिका स्वभाव है, इस लिये वह बिना परिणमन के एक क्षण भी नहीं रहती । श्रतः स्पष्ट है कि क्रिया जड़ का स्वभाव है अतः जड़ में प्रतिक्षण क्रिया होती रहती हैं। ( १ ) यही अवस्था अन्य वैदिक दर्शन की है. वे सब भी क्रिया को जड़ का स्वभाव मानते हैं । (२ तथा सम्पूर्ण वैदिक साहित्य आत्मा को निष्क्रिय मानता है। अतः क्रिया, ईश्वर की सिद्धि में साधक नहीं अपितु बाधक है । स्वयं सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि- "कहीं कहीं जड़ के निमित्त से जड़ भी बन और बिगड़ जाता है। जैसे परमेश्वरके रचित बीज में गिरने और जल पाने से वृज्ञाकार हो जाते हैं। और यति आदि के संयोग से भी जाते हैं। यहां जड़ के संयोग से जड़का बनना और बिगड़ना तो सिद्ध है और बीज आदि ईश्वर रचित हैं यह साध्य है तथा यह भी मान लिया गया है कि जल प्रादि का संयोग भी जड़ कृत है। ईश्वर कृत नहीं हैं । अतः इन क्रियाओं को साध्य लिखना भूल है ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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