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________________ माना । क्यों कि उन्हों ने कारणका लक्षण ही -"अनन्यथा सिद्ध नियत्त पूर्ववर्तित्व" किया है । अर्थात् जो अन्यथा-सिद्ध न हो और और नियत्त पूर्ववर्ति हो उसे कारण कहते हैं। नैयायिकों ने पांच अन्यथा सिद्ध माने हैं। उनमें विभु को तृतीय अन्यथा सिद्ध माना गया है अतः सिद्ध है कि ईश्वर जगम का कर्ता नहीं हो सकता जैन दर्शन ने भी कहा है। हेतुनान्वयरूपेण व्यतिरेकेण सिध्यति । नित्यस्याव्यतिरेकस्य कुतो हेतुत्व संभवः ॥ अभिप्राय यह है कि हेतु में दोनों बातें अन्वय और व्यतिरेक होनी चाहिये । जैसे जहां जहां ज्ञान है वहां वहां चेतनता है, जैसे भनुष्य पशु आदि यह तो हुअा अन्वय, इसका व्यतिरेक हुआ जहां जहां ज्ञान नहीं है वहां वहाँ चतन्य मी नहीं है जैसे दीवार मिट्टीके पात्रादि यह हुआ व्यतिरेक ! यह ही इस बातको सिद्ध करता है कि चैतन्यका और ज्ञानका साहचर्य है । परन्तु अआपके ईश्वरमें यह व्यतिरेक सिद्ध नहीं हो सकता क्योंकि आप उसको सर्व व्यापक मानते है । अभिप्राय यह है कि अापके कथनानुसार जगतका कर्ता ईश्वर है. अब जहां जहां ईश्वर हैं यहां वहां जगत् है यह तो आप कह सकोगे परन्तु आप यह नहीं कह सकते कि अहार ईश्वर नहीं है वहां २ जगत् मी नहीं है। अतः इसका व्यतिरेक नहीं है। ऐसी अवस्थामें यह कार्यकी सिद्धि नहीं कर सकता। तथा च पक्षका. सपज्ञ व विपक्ष दोनों हों तभी पक्ष दक्ष कहला सकता है। यथा पर्वत पर अग्नि है. धूम होनेसे रसोई घरकी तरह। इसमें पर्वत पक्ष रसोई घर सपद तथा तालाब आदि विपक्ष है । इसी प्रकार आपका जगत है पक्ष, अब इसका न तो सपा है और न विपक्ष । अतः यह पक्ष भी नहीं बन सकता
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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