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________________ ( ७२ ) में पक्ष पक्ष विपक्ष का लक्षण करके इसको स्पष्ट कर देते हैं। ताकि पाठकों को समझने में सुगमता हो जाये । ( पक्ष ) " संदिग्ध साध्यवान पक्षः " अर्थात् जिसमें साध्य को सिद्ध करना है उसको पक्ष कहते हैं। जैसे पर्वत पर अग्नि है। यहां अग्नि जो साध्य है. उसको पर्वत पर सिद्ध करना है. अतः पर्वतं पक्ष हुआ । I ( सपक्ष ) निश्चित साध्यवान को सपक्ष कहते हैं "निश्चित साध्यवान् सपतः " अर्थात् - साध्य जिसमें निश्चित रूपसे हो वह सपक्ष है। जैसे रसोई घर में अग्नि निश्चित रूप से देखी गई है । अतः रसोई घर हुआ सपक्ष | ( विपक्ष ) " निश्चित साध्याभावान् विपक्षः ।" जहां निश्चित रूप से साध्य का अभाव है वह विपत है । जैसे तालाब में अग्नि नहीं है । अतः तालाब विपत है । अतः कारण कार्य सम्बन्ध सिद्ध करने के लिये इन तीनों की आवश्यकता होती है। जैसे यदि पर्वत पर अग्नि सिद्ध करने के लिये जहां पक्ष रूपी पर्वत की आवश्यकता है वहां उसके सपक्ष रसोई घर और विपक्ष तालाबकी भी आवश्यकता है । यह अन्य सपक्ष है और व्यतिरेकतालाब आदि हैं। यह अन्वयव्यतिरेक दो प्रकार के होते हैं । एक देश परक दूसरे काल परक । अब जो पदार्थ नित्य और सर्वव्यापक होता है। वह किसीका कारण कर्ता) नहीं हो सकता । क्यों कि नित्य और सर्व व्यापक में न तो अन्य सपक्ष बन सकता है और न व्यतिरेक ( विपक्ष ) ही बन सकता है। बिना अन्वय और व्यतिरेक के अविनाभाव सिद्ध नहीं हो सकता यही कारण है कि नैयायिकों ने नित्य विभु पदार्थ को कारण नहीं
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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