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________________ ( ७७४ ) तथा ईश्वरको सर्वदा और सर्वव्यापक माना जाता है। परंतु कभी २ प्रलय आदिमें कार्य नहीं भी है अतः अन्वय भी नहीं हो सकता । अतः ईश्वर जगत कर्ता नहीं है। कार्यत्व श्राप लिखते हैं कि-'विना अधिक परिश्रम किए या विना बाकी खाल निकाले भी यह तो शायद सभी मानते हैं कि जिन वस्तुणे या घटनालोको इम समय में देखते हैं ान सयका प्रारंभ होता है. अर्थात् यह अनित्य है। कोई वस्तु ऐसी नहीं है, जिस पर कालका प्रभाव न हो। पुरानेसे पुराने वृक्षको लो। यह मानना पड़ेगा कि वह कभी उत्पन्न हुआ था। पुरानेसे पुराने पहाड़ को देखो। उसके आदिका भी पता लग जायगा । अाजकलके विज्ञान वेत्ता अपने परीक्षालयों में इसी बातका अन्वेषण करते रहते हैं कि अमुक पनार्थ कैसे बना ? ज्यों लो जी ( Geology ) अर्थात् भूगर्म विद्याने पता लगाया है कि अमुक पर्वत या अमुक चट्टानें किस प्रकार और कब बनी ? जिस हिमालय पर्वतको हम समस्त पृथ्वीस्थ पदार्थोंका पिता यह कह सकते हैं वह भी कभी तो उत्पन्न हुया ही होगा। भिन्न २ स्थानोंकी मिट्टो सृष्टि रचना की भिन्न २ अवस्थानोंका इतिहासमात्र है । एक वस्तु दूसरेकी अपेक्षा नहीं है क्योंकि उसके बननेका एक काल नियत है। वृक्षका फूल पत्त से नया है । पत्ता जड़से नया है । वृक्ष की जड़ उस मिट्टांसे नई है, जिसमें वह उत्पन्न हुआ। मिट्टी उस चट्टानकी अपेक्षा नई है जिस पर वह जमी हुई है, चट्टान पृथ्वीके तलको अपेक्षा नई है । पृथ्वी को भो कई अवस्थाएं बताई जाती हैं। कहते हैं कि पहले यह आग का गोला था जो ठंडा होते होते इम अवस्था में पहुंचा है। जिस प्रकार अंगार पर ठंडा होने के समय सिकुड़न
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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