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________________ ( ५६ ) आपकी इस अन्ध श्रद्धा में वाधक होना नहीं चाहते। यदि उपरोक्त गुण ईश्वर में नहीं है तो इन देवताओं को ईश्वर अथवा उसकी शक्ति मानना भ्रम मात्र है । तथा च आपने एक यजुर्वेद का ( तदेवाम स्तदादित्य स्तद् वायुस्तदु चन्द्रमा) यजु० ३२ । १ प्रमाण दिया हैं उसीसे आपके इस ईश्वर का मन हो जाता है, क्योंकि यहां श्रात्मा देवता है, तथा जीवात्मा का ही कथन है। क्योंकि इस अध्याय के में लिखा है कि "पूर्वोह जानः स गर्भे अन्तः स एव जातः स जनिष्य मारण: " यहां भाग्यकार 'उट ने गर्भे का अर्थ माता का उदर ही किया है अतः माता के गर्भ से बार बार उत्पन्न होने वाले यहां जीवात्मा का ही कथन है आपके निराकार का नहीं | तथा पं० जयदेव जी ने इन मन्त्रों का अर्थ राजा भी किया है। अतः आपका यह कथन वेदानुकूल नहीं है। पं० विश्वबन्धु जी शास्त्री एम० ए० की कल्पना आप लिखते हैं कि कवि की आंख साधारण वस्तु में असाधारणता का दर्शन करती है। वेद भी एक काव्य है, और यह विशाल सुन्दर संसार भी एक काव्य है। श्रादृष्टि के म एक २ प विचित्र प्रकार से नाटक करता हुआ मानो इस महाकाव्य के रहस्यों का व्याख्यान करता है । 'अग्नि' एक साधारण सर्व परिचित दिन रात के व्यवहार में आने वाला पदार्थ है। कर्म कांडी त्यागशील होता के लिये श्रम साधारण अग्नि नहीं रहती । यह उसके अन्दर एक एक आहुति डालता हुआ
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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