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________________ ( ६० ) मानो संसार के सहस्रों देवताओं के साथ एक रूपता को प्राप्त होरहा है। पूर्व कहे प्रकार से त्याग प्रतधारी कवि, कविता के साथ और दिव्य भाव को मिला कर देखना आरम्भ करता है। अग्नि में वह होम करके विश्व विख्यात होताओं का साथी बन रहा है। अग्नि उसके और उनके मध्य में एक दिव्य दूत का काम करती है। वह और आगे बढ़ता है | स्वयं अग्नि होता के रूप में भासने लगती हैं 1 I वह भस्मकारक न रह कर विश्व रक्षक शक्ति बन जाती है. अब उस शक्ति का विस्तृत कार्य क्षेत्र पृथ्वी तक परिमित न रह कर अन्तरिक्ष और लोक भी घेर लेता है। अब वह सर्व व्यापक महाविधायक अद्भुत शक्ति के रूप में प्रतीत होती है।” वेदसन्देश भा० ४ पं० विश्व बन्धु जी स्वयं कवि हैं, अतः उन्होंने काव्य मय भाषा में पं० राजाराम जी को कल्पना का सुन्दर खण्डन किया है। श्रापका श्राशय हैं कि अग्नि देवता तो साधारण श्रग्नि ही है परन्तु उसको कवि ने विश्वरूप दे दिया है। इस अग्नि आदि का यह सर्व व्यापक रूप न ईश्वर हैं और न ईश्वर की शक्तियां जैसा कि पं० राजाराम जी ने लिखा है । तथा आपने बड़ी बुद्धिमानी से यह भी बता दिया कि वेद ऋषियों के बनाये हुये काव्य ग्रन्थ हैं । तथा अग्नि आदि को देवताओं का रूप देना यह उनकी कविकल्पना है । यहीं बात मीमांसक मानते हैं तथा यही बात वर्तमान समय के सब स्वतन्त्र प्रज्ञ विद्वान कहते हैं । सारांश उपरोक्त कथन से देवताओंके सम्बन्ध में निम्न लिखित बातें प्रकट होती हैं।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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