________________
सो एक चेतन सर्वज्ञ, पूर्णकाम और प्रानन्द मय अनन्त है । इन दो विभिन्न जाति वाले द्रव्यों का सम्बन्ध कैसे हो सकता है । अर्थात् सम्बन्ध सजातांध का सजातीय संघाला है। यादे इस असम्भव बात को भी मानलें कि किसी प्रकार उनका सम्बन्ध हो गया तो भी ईश्वर का ईश्वरत्व नहीं रहेगा। क्यों कि उस अवस्था में यह मानना पड़ेगा कि आपके ईश्वर से अधिक शक्ति परमाणुओं में है जिन्होंने ईश्वर तक को भी मोहित कर लिया । ___ यदि कहो कि परमणुओंने मोहित नहीं किया अपितु ईश्वरने ही स्मथ इनसे सम्गन्ध स्थापित कर लिया तो भी ईश्वरत्व नष्ट हो गया क्यों कि ऐसी अवस्थामें वह एक पतित और बहुत ही श्रधार। व्यक्ति सिद्ध होता है जो व्यर्थ ही एक तुमछुतम चोज से सम्बन्ध स्थापित करता फिरना है। ऐसा विवेक हीन व्यक्ति ईश्वर नहीं हो
दूसरी बात यह है कि यदि उसने इन्द्रियोंकी तरह इस जगतसे सम्बन्ध स्थापित कर लिया है तो उसको इसके सुख दुरस्त्र आदि भी भोगने पड़ेंगे। क्यों कि संसर्गज दोषों का होना आवश्यक है। जिस प्रकार जीव कर्म का है तो उसको जनका फल भोगना पड़ता है, इसी प्रकार ईश्वर को भी सुख दुख अादि भोगने पड़ेंगे। यहां एक प्रश्न यह भी है कि जब सांसरिक दुःख भोगते २ एक समय प्राता है तथ इसको इस संसार से वैराग्य हो जाता है. और इससे मुक्ति चाहता है । ईश्वर का भी कभी २ इस प्रपंचसे वैराग्य होता है या नहीं। यदि होता है तो फिर कौन नी शक्ति है जो फिर भी इस वेचारको मुक्त नहीं होने देती। और यदि वैराम नहीं होता तो वह ईश्वर, अमन्य जीवों की तरह निष्कृष्ट रहा । जब वह अपना उद्धार नहीं कर सकता तो औरों का क्या खाक उद्धार करेगा । जो स्वयं ही बन्धनमें पड़ा है वह तो दूसरोंको कैसे