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________________ ( ७६४ ) 1 छुड़ावेगा, इससे सिद्ध है कि ईश्वर कर्त्ता नहीं हो सकता । जिस प्रकार मीमांसा दर्शनने तथा वेदान्त ने ईश्वरका खण्डन किया है इस प्रकार आपके ही दर्शनकार ऋषि ने आपके इस कल्पित कर्त्ता का खण्डन किया है । 1 कार्यव आपने सबसे प्रथम इस जगतको कार्य सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है । परन्तु दार्शनिक जगत में कार्यत्व भी आज तक एक पहेली ही बनी हुई है, जिसको आज तक कोई हल नहीं कर सका है । यदि हम यह मान भी लें कि जगत कार्य हैं तो भी प्रत्येक कार्य के लिये कर्ताकी आवश्यकता है यह सिद्ध नहीं है। यदि हम यह भी मान लें तो भी यह सिद्ध नहीं हो सकता कि कर्ता ईश्वर है और अमुक का जीव तथा अमुकका कर्ता स्वयं जड़ अमुक कार्यका पदार्थ है। क्योंकि सत्यार्थ प्रकाशमें स्वयं स्वामीजी महाराज ने स्वीकार किया है कि "कहीं कहीं यमि. वायु आदि जड़ पदार्थोंके संयोगसे भी जड़ पदार्थ बनते रहते हैं" I यह बात प्रत्येक मनुष्य नित्यं प्रति प्रत्यक्ष भी देखता है यदि हम इन सब प्रश्नोंकों न भी उठायें और श्रापके इस जगतको कार्य ही मान लें तो भी यह प्रश्न उपस्थित होता है कथनानुसार किं कार्य और कारण किसे कहते हैं ? क्योंकि हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि प्रत्येक वस्तु कारण भी है तथा कार्य भी । आप ही ने इस लेख में पानी और बर्फका उदहरण देकर लिखा है कि पानी से बर्फ बनता है, अतः हम पानी को कारण और बर्फको कार्य कहेंगे। परन्तु आप जरा विचार करें कि जब वही वर्फ पिघल कर पानी हो गया तब पानी कार्य हुआ और वर्फ कारण । ठीक इसी प्रकार प्रत्येक पदार्थ कार्य भी है और कारण भी है। जैसा सोना जेवरका कारण है और पुनः जेवर से -
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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