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________________ ( ७५५ ) है। पृथ्वी आदि प्रह सूर्य आदि तारागण, चन्द्र आदि सब क्या बिना नियम के चल रहे हैं। आदि आदि .. प्रश तीक्षा संसार एक वौद्धिक और दूसरे प्राकृतिक बौद्धिक नियमोंमें विधान आज्ञा या स्वतन्त्रता होती हैं। जैसे यह कार्य करनेसे इस प्रकारका दरड या पारितोषक मिलेगा आदि । बौखिक नियम में स्वतन्त्रता भी होती है। अर्थात् उन नियमों का पालन करना या न करना यह व्यक्तियोंकी इच्छा पर निर्भर है। परन्तु प्राकृतिक नियम विधानात्मक नहीं होते जैसे जल का नियम हैं नीचे को बहना, यह भी नियम है कि जल शीतल ही होता है। इसी प्रकार श्रमि ऊपर को जाती है और उष्ण होती है। परमाणु सूक्ष्म ही होता है, तथा जड़ ही होता है आदिर | नियमों का नाम स्वभाव है या धर्म कहलाते हैं अथवा न को प्राकृतिक नियम भी कह सकते हैं। आपने जितने भी उदाहरण दिये हैं वे सब प्रकृति के सभाव हैं। दूसरी बात यह है कि बोद्धिक नियम अपवादात्मक तथा परिवर्तनशील होते हैं। आपने जिनको नियम बताया है उनमें न तो अपवाद ही और न परिवर्तनशीलता है अतः यह सिद्ध हो गया कि जिनको आप नियम कहते हैं वे वास्तव में पुद्गल के स्वभाव हैं । अत्र यदि स्वभाव का भी कर्त्ता माना जायगा तो उस वस्तु का ही अभाव सिद्ध हो जायगा. क्यों fe धर्म और धर्मी कोई पृथक में पदार्थ नहीं है अपितु एक ही वस्तु के दो नाम हैं। जैसे अभि और गरमी एक हो वस्तु हैं । यदि अमि में गरमी का नियामक कोई भिन्न माना जाय तो अभि का ही अभाव सिद्ध होगा। इसी प्रकार अन्य पदार्थों के विषय में भी है। दूसरी बात यह है कि इन नियमों का भो किसी को नियामक माना जायगा तो आपका ईश्वर भी अनित्य सि होगा. क्योंकि उसमें भी नियम हैं तब उनका भी कोई नियामक चाहिये इस 1
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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