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________________ ( ७५४ ) गुणसे ही ले रहा है, यही कारण है कि आर्य समाजके प्रसिद्ध सन्यासी स्वा० दर्शनानन्द जी ईश्वर में इच्छा नहीं मानते थे । उनका कथन है कि इच्छापूर्वक क्रिया जीवक्री होती है तथा नियमः पूर्वक क्रिया ईश्वरकी। उन्होंने ईश्वर में इच्छा माननेका खण्डन अपनी पुस्तकोंमें तथा शास्त्रार्थ आदिमें भी किया है। (देखो शास्त्रार्थ अजमेर ) अतः ईश्वर में इच्छा बताना ईश्वरसे इन्कार करना है। अतः यह सिद्ध है कि न तो ईश्वर के स्वभावसे ही सृष्टि उत्पन्न हो सकती है, और न यह सृष्टि उसकी दयाका ही परिणाम है और न उसकी क्रीड़ा मात्र ही है। यह स्वयं सिद्ध अपने आप है, न कभी बनी और न कभी नष्ट होगी । __ आस्तिकवाद और ईश्वर पं. गंगाप्रसादजी उपाध्यायने "आस्तिकवाद" नामक पुस्तक में ईश्वर सृष्टिकर्ता के विषयमें अनेक युक्तियां व प्रमाण दिये हैं। इस विषयमें यह पुस्तक वर्तमान समयमें सर्वश्रेष्ठ समझी जाती है। विद्वान् लेखक को इस पर मंगला प्रसाद पारितोषिक भी मिली है। जिससे इसकी प्रसिद्धि और उपयोगिता बढ़ी है। यही कारण है कि इसको पाठकोंने अच्छा अपनाया है। श्रतः ईश्वर विषय पर कुछ लिखते हुए यह आवश्यक है कि इसमें दी हुई युक्तियों व प्रमाणादि का भी पर्यालोचन किया जावे । नियम दूसरे हेतु आपने नियम दिया है। भापका कहना है कि संसारमें हम सर्वत्र नियम देखते हैं । अर्थात् प्रत्येक पदार्थ क्रमशः बढ़ता है, मनुष्य आदि सभी की वृद्धि का नियम है। भौगोलिक संसार की भी यही अवस्था है । नदी आदि सब नियम पूर्वक बहती हैं । इसी प्रकार खगोल विद्या भी नियम का उपदेश दे रही
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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