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सिद्धांत है। इसके कुछ काल बादही यूनानमें एक अन्य दार्शनिक हुआ जिसका नाम इम्पीडो क्लेस था । उसका मत था कि परमा
में इच्छा और द्वेष भी है। राहुलजीका कहना है कि भारत में परमाणुवाद इन्हीं से आया परन्तु हम इस बात से सहमत नहीं हैं क्योंकि म० महाबीर तथा उनके समय में ही कात्यायन भी परमाणुवादी था । तथा इनसे पूर्व भी चार्वाकके आचार्य भूतबादी थे ये सब थकू २ भूतों के पृथक परमाणु मानते थे । तथा वैशिषिक दर्शनकी भी आप नवीनता सिद्ध नहीं कर सकते हैं, अतः आपका यह मत केवल कल्पना मात्र है । तथा आपने भी इस कल्पना के सिपे एक भी आकर उपस्थित नहीं किया है. यह कल्पना बिल्कुल निराधार भी है।
ईश्वर
एनक्सागोरस - पश्चिम में सबसे पहला यह दार्शनिक है जिस ने ईश्वर की कल्पना का श्राविष्कार किया था। इससे पूर्व यूरुप आदि के लोगों को ईश्वर के विषय में कुछ भी ज्ञान न था। इसके मत से भी सृष्टि अनादि और अनन्त है। इस जगत के रचने के लिये ईश्वर की आवश्यकता नहीं. परन्तु इस जगत में जो सौन्दर्य हैं, तथा नियम आदि हैं उनके लिये ईश्वर भी आवश्यक है। इस तरह ईसा से ५०० वर्ष पहले पश्चिम में मनुष्य की बुद्धि ने ईश्वर की रचना की ।
महर्षि सुकरात और उसके बादके दार्शनिक
सुकरात जिसे यूरोप में विज्ञानका पिता समझा जाता है, उस का मत आत्मा सम्बन्धमें इस प्रकार था: - सुकरातने शिमी