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________________ संख्या ब्रह्म की स्थापना की । यह शङ्कराचार्य की तरह अद्वैतवादी था। इसका सिद्धान्त था कि दस हजार वर्ष बाद सम्पूर्ण संसार जैसा पहले हुआ था फिर ऐसा होजाता है। इसी दस हजार वर्षों को लेकर यहाँ चार वर्षों की कल्पना की गई तथा चतुर्युगी के भी दस हजार वर्ष माने गये हैं। यथा-सतयुग के चार हजार, त्रेता के तीन, द्वापर के दो और कलियुग का एक हजार वर्ष । देमोक्रितु–यह यूनान का सुप्रसिद्ध युगपरिवर्तक और एक महान दार्शनिक आचार्य हुआ था । यह अनुमानतः ईसा से ४५ वर्ष पूर्व हुआ था। यह परमाणुषादी तथा द्वैतवादो था। इसके मत से भाव और अभाव दो पदार्थ हैं। भाव यह है जिससे शून्य मटा दुपा है तथा प्रभव म प है ! भान पदार्थ अनेक परमाणुओंसे बना है। इसका कहना था कि परमाणुओं में परस्पर आकर्षण होनेसे जगत बना है। तथा परमाणुओं के विभाग से जगत का नाश हो जाता है परमाणुओं में गुरुत्व होने के कारण अनादिकाल से वे आकाश में नीचे गिरते जाते हैं । जो हलके हैं धीरे धीरे गिरते हैं और जो भारी हैं वे शीघ्र नीचे गिरते हैं। अग्नि के चिकने और गोल परमाणुओं से मनुष्य की आत्मा बनी है। श्रात्माके ये परमाणु शरीर भरमें व्याप्त है। सांस बाहर निकलने से आत्मा के परमाणु बाहर निकल जाते हैं. परन्तु इसकी पूर्ति प्राण वायु द्वारा आग्नेय परमाणुओं को अन्दर लेने से हो जाती है । इन्द्रियों और पदार्थों से कुछ परमाणु निकलकर मार्गमें मिलते हैं 1 उसासे पदार्थांका ज्ञान होता है। जिस आकार के परमाणु जिस इन्द्रियोंमें हैं उस इन्द्रियसे उसी प्रकार के आकार वाले पदार्थ का बोध होता है । यह भी जैन धर्म दर्शन की तरह मुल परमाणुओं को एक ही प्रकार के मानता है। अग्नि आदि सब एक ही प्रकार के परमाणुओं का विकार मात्र है। यही जैन
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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